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बरसात

मदन गोपाल शाक्य ‘प्रकाश’
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
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बनके बदली बरसती,घनघोर चहुँओर।
दादुर दौड़े घूमते,घिरे घटा घनघोर॥

प्यासी धरा पुकारती,बरसो दीनदयाल।
भीगे दामन भूमि का,हरियाली तत्काल॥

सारंग ने सारंग दियो,सारंग बरसो आए।
सारंग जो मुख से कहे,सारंग निकसो जाए॥

चार मास बरसात के,बरसे रिमझिम धार।
हरियाली बढ़ने लगी,महके फूल बहार॥

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