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दादी की परी

डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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आज दिल बहुत उदास था। तोषी के प्रसव का समय नजदीक आ रहा था। एक भय मन में समाया था कि सही तरीके से प्रसव निपट जाए। एक अजीब-सा डर मन में बैठ गया था। तोषी उसकी इकलौती बहू थी। जब उसको लेकर आई तब ही उसने कह दिया था,बेटा तुम मेरी बहू नहीं बेटी हो,बेटियाँ अपनी गृहस्थी देख रही हैं। तुम मेरे घर को,जो आज से तुम्हारा है,देखोगी।
जबसे तोषी गर्भवती हुई,लगातार समाचार पत्रों में बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं के समाचार पढ़ती थी,तो उससे बह परेशान हो जाती थी। मैं उसे हमेशा कहती,नकारात्मक विचार क्यों सोचती हो ?
कल जैसे ही समाचार पढ़ा,बहुत दर्दनाक घटना का सामना हुआ। मन्दसौर में ८ साल की बच्ची से बलात्कार,उसकी स्थिति देखकर डॉक्टर भी विचलित। ८ साल की बच्ची,जिसको कुछ पता नहीं…राक्षसों ने उसके नाजुक अंग क्षत-विक्षत कर दिए। मेरी रुह कांप गई। सोच रही थी तोषी के हाथ अखबार ना आए,पर उसने जैसे ही टी.वी. चलाया,हर चैनल पर यही खबर थी।
तोषी को प्रसव दर्द शुरू हो गया। बह बहुत घबरा रही थी। बार-बार एक ही शब्द बोल रही थी-‘माँ लड़की नहीं होनी चाहिए। यदि उसके साथ ऐसा हुआ तो..।’
मैंने और डॉक्टर दोनों ने उसे बहुत प्यार से समझाया- ‘तुम भी तो लड़की हो।’
दो घण्टे बाद एक बहुत प्यारी नन्हीं गुड़िया आ चुकी थी। बेटा भी तोषी को समझा रहा था। मैंने जाकर कहा-‘तोषी,ये दादी की परी है। इसको कुछ नहीं होने दूंगी। इसको इतना निडर बनाऊंगी कि कोई राक्षस इसे छू नहीं पाएगा।’

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