प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)
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जीवन में आनंद का,बेटी मंतर मूल।
इसे गर्भ में मारकर,कर ना देना भूल॥
बेटी कम मत आंकिये,गहरे इसके अर्थ।
कहीं लगे बेटी बिना,तुझे सृष्टि व्यर्थ॥
बेटी होती प्रेम की,सागर सदा अथाह।
मूरत होती मात की,इसको मिले पनाह॥
छोटी-मोटी बात को,कभी न देती तूल।
हर रिश्ते को मानती,बेटी करें न भूल॥
बेटी माँ का रूप है,मन ज्यों कोमल फूल।
कोख पली को मारकर,चुनो न खुद ही शूल॥
बेटी घर की लाज है,आँगन शीतल छाँव।
चलकर आती द्वार पर,लक्ष्मी इसके पाँव॥
बेटी चढ़े पहाड़ पर,गूंजे नभ में नाम।
करती हैं जो बेटियाँ,बड़े-बड़े सब काम॥
बेटी से परिवार में,पैदा हो सम-भाव।
पहले कलियाँ ही बचें,अगर फूल का चाव॥
बिन बेटी तू था कहाँ,इतना तो ले सोच।
यही वंश की बेल है,इसको तो मत नोंच॥
हर घर बेटी राखिये,बिन बेटी सब सून।
बिन बेटी सुधरे नहीं,घर,रिश्ते,कानून॥
बेटे को सब कुछ दिय,खुलकर बरसे फूल।
लेकिन बेटी को दिए,बस नियमों के शूल॥
सुरसा जैसी हो गई,बस बेटे की चाह।
बिन खंजर के मारती,बेटी को अब आह॥
झूठे नारों से भरा,झूठा सकल समाज।
बेटी मन से मांगता,कौन यहाँ पर आज॥
बेटी मन से मांगिये,जुड़ जाये जज्बात।
हर आँगन में देखना,सुधरेगा अनुपात॥
झूठे योजन है सभी,झूठे हैं अभियान।
दिल में जब तक ना जगे,बेटी का अरमान॥
अब तो सहना छोड़ दो,परम्परा का दंश।
बेटी से भी मानिये,चलता कुल का वंश॥
बेटी कोमल फूल-सी,है जाड़े की धूप।
तेरे आँगन को खिले,बदल-बदलकर रूप॥
सुबह-शाम के जाप में,जब आये भगवान।
बेटी घर में मांगकर,रखना उनका मान॥