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ममता की छाँव

रोशनी दीक्षित
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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तूफानी लहरों में,वो बन जाती थी मेरी नाव,
बहुत याद आती है आज भी, वो ‘ममता की छाँव।’
ज़िन्दगी नासूर बनकर,चुभने लगी है ‘माँ’-
आ जाओ लौटकर ना,भर दो मेरे घाव॥

याद है अब भी,तुम्हारे हाथों का सिरहाना,
जन्मदिन पर मेरे,वो खीर-पूड़ी खिलाना।
अब तुम बिन दर्द से,लड़ना सीख रही हूँ ‘माँ’-
जानती हूँ कैसे,एक मुस्कान से हजार आँसू है छुपाना॥

काश! मैं कभी बड़ी ही नहीं होती,
छुप जाती तुम्हारे आँचल में,हँसती-कभी रोती।
अब रूठती हूँ जब भी,मना लेती हूँ खुद को-
जो तुम नहीं तो कौन है अब,जिसे परवाह मेरी होती॥

परिचय-रोशनी दीक्षित का जन्म १७ जनवरी १९८० को जबलपुर (मप्र)में हुआ है। वर्तमान बसेरा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़) स्थित राजकिशोर नगर में है। स्नातक तक शिक्षित रोशनी दीक्षित ने एनटीटी सहित बी.एड. एवं हिंदी साहित्य से स्नातकोत्तर भी किया है। इनका कार्य क्षेत्र-शिक्षिका का है। लेखन विधा-कविता,कहानी,गज़ल है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का प्रचार व विकास है।

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