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ब्रज अधिपति गोपाल

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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ब्रज अधिपति गोपाल हे,सुन लो आज पुकार।
प्रेम-भक्ति आशा लिए,आया तेरे द्वार॥

श्री हरि रूप अनन्त है,जैसा भी हो जाप।
सकल चराचर जीव में,कृष्ण समाये आप॥

संगम है यह प्रेम का,राधा अरु घनश्याम।
इनसे ही संसार है,पूजन आठों याम॥

ग्वाल बाल के रूप में,वन में दीनानाथ।
सखी राधिका साथ में,लिए बाँसुरी हाथ॥

वृंदावन के साँवरे,करूँ वंदना भोर।
मोर मुकट बंशी लिए,आओ माखनचोर॥

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