प्रेमशंकर ‘नूरपुरिया’
मोहाली(पंजाब)
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विचारों का जगत यह सबके अपने विचार,
इसी से चली दुनिया,फिर चलती बातें चार।
विचार ना सबके एक से होते,ना सबकी बात,
कहीं मिलती सहमति कहीं विरोध की रात।
पर प्रकृति है सबकी कभी ना करती घात,
करती सबका ख्याल यह ना करती पक्षपात।
प्रकृति से ही जन्में हैं यहां हम सभी लोग,
प्रकृति ही मरण है हमारा प्रकृति ही योग।
सताते बेइंतहा किसी को करता पलटवार,
प्रकृति भी है ऐसा ही एक घातक हथियार।
क्या नहीं दिया हमें ? दिया है उसने बेशुमार,
जीने के पुनीत साधनों की,की है भरमार।
‘कोरोना’ प्रकट हुआ,भयंकर एक अभिशाप,
खुद की बड़ी भूल से,डरा मानव अपने-आप।
चीन के वुहान से,कोरोना विषाणु खतरनाक,
बनकर इसने जल्दी फिर जमाई अपनी धाक।
अस्त-पस्त कर दिए सब,गिरे औंधे मुँह जाए,
जनवरी महीना में यह भारत में घुस आए।
जिन्हें खतरा हुआ विदेश में,बुलाए अपने पास,
भारत की याद आ गई,है उन्हें जन्मभूमि खास।
लाए वो कोरोना बाहर से,फिर मच गया आतंक,
हुए परेशान लोग सभी,लग गया कोरोना डंक।
महामारी के सामने खड़े,थे भारत के वीर,
डटकर मुकाबला किया जो थे रणधीर।
चिकित्सक,नर्स,सफाईकर्मी,पुलिसकर्मी खास,
ये सभी योद्धा महान हैं,देश को बहुत आस।
घर-परिवार छोड़ सब,चले जंग में सुहानी चाल,
देश पहले था उनको,सही करें देश का हाल।
अस्पताल में डटे रहे चिकित्सक और नर्स महान,
सफाईकर्मियों ने भी की मेहनत बड़ी बलवान।
बीमार मरीजों की कर रहे सफल देखभाल,
सफ़ाई का भी रखा गया विशेष विशेष ख्याल।
खुद खतरे के ढेर पर न लड़खड़ाए उनके पाँव,
बचाने मानवता को लगा दिया खुद को दांव।
बाहर सड़कों पर खड़े पुलिस के जवान तैनात,
रोकने बीमारी को,कर रहे थे वो दो-दो हाथ।
समझा-बुझाकर लोगों को भेज रहे घर-द्वार,
जो बे बजह निकल रहे फिर डंडे चलाए चार।
ना दिन की तपन देखी,ना देखी अंधेरी रात।
लबालब था आत्मविश्वास पक्की थी बात।
लड़ने इस महामारी से बैठा घर में सारा देश,
इन वीरों के मन में तनिक भी नहीं रहा द्वेष।
देख मजबूर हालात को कभी न डाले हथियार,
हर तरह की मुसीबत में जंग को थे तैयार।
संकटकाल में जूझ रहे फिर भी न मानी हार,
खड़े चारों महान स्तंभ ले समाज का भार।
न सोचा कभी भी करेंगे हम भी अब आराम,
निभा रहे अपना फर्ज लगे रहे सुबह से शाम।
लड़ाई यह लंबी रही लगे रहे वो योद्धा रोज,
संपूर्ण मानवता का उनके कंधों पर है बोझ।
मनोबल न टूटे उनका न हो जाएं वो कमजोर,
मुसीबत की इस घड़ी में अब रूठ न जाए भोर।
हौंसला बढ़ाने वीरों का कही प्रमं ने बात।
तालियों से सम्मान करो जवानों का एक साथ।
मन में उनके हिम्मत बढ़े,बढ़े उनका विश्वास,
वीर वो कमजोर न हों,समाज को उनसे आस।
संकटकाल में लड़ रहे हैं ये भी सच्चे पहरेदार,
सभी के मन में इनका आदर हो करो यह सुधार।
करते-करते काम पी ली सारी अपनी पराई पीर,
मेरा उनको सादर प्रणाम है जो हैं ‘कोरोना वीर॥’
परिचय-प्रेमशंकर का लेखन में साहित्यिक नाम ‘नूरपुरिया’ है। १५ जुलाई १९९९ को आंवला(बरेली उत्तर प्रदेश)में जन्में हैं। वर्तमान में पंजाब के मोहाली स्थित सेक्टर १२३ में रहते हैं,जबकि स्थाई बसेरा नूरपुर (आंवला) में है। आपकी शिक्षा-बीए (हिंदी साहित्य) है। कार्य क्षेत्र-मोहाली ही है। लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और कविता इत्यादि है। इनकी रचना स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले नूरपुरिया की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक कार्य एवं कल्याण है। आपकी नजर में पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय कमलेश्वर,जैनेन्द्र कुमार और मोहन राकेश हैं। प्रेरणापुंज-अध्यापक हैं। देश और हिंदी के प्रति विचार-
‘जैसे ईंट पत्थर लोहा से बनती मजबूत इमारत।
वैसे सभी धर्मों से मिलकर बनता मेरा भारत॥
समस्त संस्कृति संस्कार समाये जिसमें, वह हिन्दी भाषा है हमारी।
इसे और पल्लवित करें हम सब,यह कोशिश और आशा है हमारी॥’