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…लेकिन जीत रखूँगा

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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मैं मधुरस को पीने वाला,
रसना में नित गीत रखूँगा।
चाहे कोई अनल मुझे दे,
उर में अपने शीत रखूँगा॥

मैं सागर हूँ नहीं दिखाता,
किसी और को कर के छाले।
चुभते शूलों ने भी उर में,
गीत दिये हैं नित मतवाले॥

पथ में ठोकर से गिर जाऊँ,
उर में लेकिन जीत रखूँगा।
मैं मधुरस को पीने वाला,
रसना में नित गीत रखूँगा…॥

उर को दीप बनाया मैंने,
कभी नहीं मैं तम से हारा।
हास देख अधरों में मेरे,
माथ चूमता है उजियारा॥

चाहे कोई गरल मुझे दे,
मैं उसको भी मीत रखूँगा।
मैं मधुरस को पीने वाला,
रसना में नित गीत रखूँगा…॥

मुझे पता है दु:ख के बादल,
छँट जाएँगे हास देखकर।
उर की सभी व्यथाएँ छँटती,
उर में भरता रास देखकर॥

मैं निपात में उर को अपने,
मधुमासों सम पीत रखूँगा।
मैं मधुरस को पीने वाला,
रसना में नित गीत रखूँगा…॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।

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