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सारथी का स्वार्थ बस इतना-सुरक्षित भारत रहे

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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कोरोना का सच-दुश्मन है गुमनाम नहीं क़ोई ईमान है,
चहुँओर जोखिम खतरे का रोना ‘कोरोना’ भान है।

किस तरह कैसे करेगा वार दुनिया अनजान है,
हर तरफ युद्ध का घोष,नहीं कोई हथियार है।

छोटे से विषाणु ने विश्व की डाली सांसत में जान है,
भारत है विश्वगुरु,नरेंद्र दामोदर कृष्ण कलयुग में सारथी महान है।

सूर्योदय से संध्या,दिन और रात करता पाञ्चजन्य का शंखनाद है,
सारथी की चाहत खो ना पाए एक भी माँ भारती की संतान।

प्राण-पण से दृढ़ प्रतिज्ञ इस महायुद्ध का सारथी मानवता की लाज है,
सारथी का स्वार्थ बस इतना-सुरक्षित भारत का बच्चा,वृद्ध,नौजवान रहे।

करता है दिन-रात सावधान दिल से,दिल का रिश्ता हो,
भौतिकता की नैतिकता थोड़ी दूरी बनी रहे।

नाक ना कटे,नाक ढक रखो,ना गलबहियां,ना हाथ मिलाएँ,हाथ स्वच्छ और साफ रहे,
गली-मोहल्ले,सड़कों पर ना भीड़ कोलाहल हो,घर से ना निकलो जब तक कोईं जरुरी न काम रहे।

घर-बाहर,जहाँ-तहाँ कवच यही हथियार,
भाग जाएगा दुम दबाकर दुश्मन अनजान,कोरोना का दम घुटेगा..जाएगा हार।

यह युद्ध है भयंकर दुनिया और भारत को मत बनने दो श्मशान,
कहीं बांद्रा,कहीं आनंद बिहार सूरत या तबलीगी जमात।

क्या तुम इंसान नहीं! खुद से तुमको प्यार नहीं तुम्हारा घर-परिवार नहीं,
किस छद्म छलावे के हो गए तुम शिकार।

खाकी का हाथ काटते पत्थर मारते करते हो शर्मशार,
तेरे लिए जीता-मरता है छोड़ अपना घर-परिवार।

सेविकाओं पर थूकते,डॉक्टर से करते दुर्व्यवहार..ये सब तेरे भाई-बंधु रिश्ते-नातों के व्यवहार,
शुक्र करो उस मालिक का इस जंग में,खाकी वर्दी पहला परवरदिगार।

कभी डांट से कभी प्यार से हर इंसा की जिंदगी को उजियार,
जाति-पाँति धर्म भेद-भाव नहीं सबके साथ एक समान।

डॉक्टर और नर्स हॉस्पिटल का स्टाफ दूसरे भगवान् एक-एक की जान बचाने में कभी-कभी देते अपनी जान,
आओ नमन करें इनका हम सब भारत वासी करें मान-सम्मान।

इनके भारतवासी होने का हम भाग्य भगवान् का धन्यवाद करें,
दुश्मन की तो चाहत यही ऐसे ही लड़ते-लड़ते दे दो उसको राह।

देखो उनको बन गए जो विषाणु युद्ध का काल,
अपने भी नहीं पूछते लावारिस-सी लाश।

जागो भारतवासी साहस और संकल्पों में,
युद्ध सारथी के सयंम रथ में त्याग सभी द्वेष दम्भ राजनीति छद्म कर्तव्यों के आवाहन में॥

परिचय–एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।
अनपढ़ औरत पढ़ ना सकी फिर भी,
दुनिया में जो कर सकती सब-कुछ।
जीवन के सत्य-सार्थकता की खातिर जीवन भर करती बहुत कुछ,
पर्यावरण स्वच्छ हो,प्रदूषण मुक्त हो जीवन अनमोल हो।
संकल्प यही लिए जीवन का,
हड्डियों की ताकत से लम्हा-लम्हा चल रही हूँ।
मेरी बूढ़ी हड्डियां चिल्ला-चीख कर्,
जहाँ में गूँज-अनुगूँज पैदा करने की कोशिश है कर रही,
बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ,स्वच्छ राष्ट्र, समाज,
सुखी मजबूत राष्ट्र,समाज॥

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