डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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घर-परिवार स्पर्धा विशेष……
क्यूँ बूढ़ी आँखें राह निहारे,
पड़ी सूनी चौखट सूने द्वारे।
नहीं कोई गूंजे किलकारी,
है मुरझाई फूलों की क्यारी।
खामोशी का राज हो गया,
भोलेपन का साज सो गया।
कहाँ गया रोना-चिल्लाना,
हँसना-रूठना और मनाना।
कहाँ खो गए बातों के दौर,
नित मिल बैठने के वो ठौर।
सो गईं वो ठहाकों की रातें
बावन पत्तों की बारातें।
रात-रात भर चाय छनना,
फर्श पर कन्नादूड़ी बनना।
छत के वो ठंडे से बिछौने,
कोई कहीं भी जाता सोने।
सोने का भी नहीं ठिकाना,
नींद कहाँ आँखों में आना।
माँ-बेटी का वो बतियाना,
सास-ननद की बात बताना।
बच्चे तो मामा के खिलौने,
नन्हें-मुन्हे प्यारे सलौने।
नाना मन ही मन हर्षाते,
बस मीठी-सी चपत लगाते।
अब तो घर का कोना-कोना,
नजर आ रहा सूना-सूना।
काश वो दिन लौट के आएं,
नानी-नाना की उमर बढ़ाएं॥
परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।