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चलो,रोटी को आवाज दें

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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चलो हम आज रोटी को आवाज दें,
पेट की उम्मीदों को नई परवाज़ दें।

हमारी बस्ती में भी वो लगाए डेरा,
गरीबों की गली में भी लगाए फेरा
हलक सूखे हैं पेट में जलती अग्नि,
करे हमारे घरों में भी आकर सबेरा।
रोते बचपन को एक नया साज दें,
चलो हम आज रोटी को आवाज दें…॥

नसीब क्या रूठा ईश्वर भी रूठ गया,
घरौंदा सपनों का सुबह हुई टूट गया
हर घड़ी निवालों की फिक्र रहती है,
जो रूखा-सूखा था आज छूट गया।
कल मिले न मिले आज सब बाँट दें,
चलो हम आज रोटी को आवाज दें…॥

मृत्य से नहीं,अब भूख से ही डर है,
काँटों से गुजरती गरीबों की डगर है
ये रोटी भी प्रभु कैसी बनाई है तूने,
कट जाता इसी में ये उम्र का सफर है।
मृत्यु के हाथों में जीवन की लाज दें,
चलो हम आज रोटी को आवाज दें…॥

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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