जल की पाती

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ मनावर(मध्यप्रदेश)**************************************** जल कहता-इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता मुझे,आवश्यकता होने परखोजने क्यों लगता मुझे। बादलों से छनकर,मैं जब बरसतासहेजना ना जानता,इसलिए इंसान तरसता। ये माहौल देख के,नदियाँ रुदन करने लगतीउनका…

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काली घटा संग काले बादल

संजय सिंह ‘चन्दन’धनबाद (झारखंड )******************************** बे-मौसम के काले बादल,मस्त हवा, निराले बादलरिमझिम वर्षा काले बादल,बिन मौसम मतवाले बादल। सिकुड़न, सर्द बढ़ा दे बादल,बड़े घने यह काले बादलआंधी-तूफ़ाँ ये काले बादल,मैखाने…

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क्यों आँसू अब तक नहीं बहे !

राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** आँसू नहीं बह रहे हैं तो कोई तो कारण होगा,रोती रह जाऊँगी तो कैसे बच्चों का पालन होगाछोटे से बच्चों को भाग्य भरोसे छोड़ गए हो तुम,मेरे…

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हर शब्द अमृत

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ उसका हर एक शब्द अमृत है,वह हर युग में अपना परिदृश्य बताती रहीज्ञान के इस कुंज में वहहमें ज्ञानी बनाती रही,भटकते हुए हर एक जीव…

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उलझते रिश्ते

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)******************************************* दुनिया उलझी है रिश्तों में,हम तो जी रहे हैं किश्तों में। किसी की बीवी किसी की साली,किसी की साली किसी की घरवालीकिसी की बहना…

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प्रेम तुम्हारे स्पर्श का

रश्मि लहरलखनऊ (उत्तर प्रदेश)************************************************** तुम्हारे स्पर्श का नरम आश्वासन,मेरी मुट्ठी के बन्धन से छूटकरभावों की वाहिनियों में दौड़ने लगता है,मैं सुघड़ता से किनारे सरका देती हूॅंअपनी वैचारिक बेचारगी को। तुम्हारे…

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प्रेम की गाँठें

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ मनावर(मध्यप्रदेश)**************************************** ठंडी हवा,मचल कर न चलठंड की आबो-हवा,कहीं चुरा न ले जियाबेचैन तकती निगाहें,मौसम में देखती दरख्तों कोसोचता मन कह उठता,बहारें भी जवान होती। धड़कनें बढ़ जाती,प्रेमियों की…

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चलो चलें वनभोज में

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’धनबाद (झारखण्ड) ****************************************** चलो चलें वनभोज में,मिल-जुलकर मौज मेंपूस माह के संयोग में,चलो चलें वनभोज में। कह दो सभी दोस्तों को,छोड़ो न किसी रिश्ते कोमिल-जुलकर सभी जाएँगे,झूमेंगे, नाचेंगे…

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कैसी तृष्णा…

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)******************************************** प्रयत्न का पानी प्राप्त करती तृष्णा,कामना की खाद पर पोषित होती तृष्णा…हर हृदय खेती में लहलहाती हरियाती तृष्णा,कभी उज्ज्वल कभी काली तृष्णा…। कभी न भरने, मरने वाली…

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परोपकारी

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’इंदौर (मध्यप्रदेश )******************************************** हम ईश्वर के प्यारे बच्चे,नेक कर्म करें बनें सच्चेअकड़ दिखाकर नहीं तनें,चलो हम भले मानव बनें।हम ईश्वर के प्यारे बच्चे… सरिताएं जैसे देती है…

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