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प्रेम तुम्हारे स्पर्श का

रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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तुम्हारे स्पर्श का नरम आश्वासन,
मेरी मुट्ठी के बन्धन से छूटकर
भावों की वाहिनियों में दौड़ने लगता है,
मैं सुघड़ता से किनारे सरका देती हूॅं
अपनी वैचारिक बेचारगी को।

तुम्हारे प्रेम की,
स्वीकृत चुहलबाजियाॅं
स्मृतियों में
एक स्निग्ध-आंदोलन छेड़ देती है,
खनक उठते हैं घर के वंदनवार के नुपुर।

और…
सुर्ख हो पड़ते हैं ऑंगन के
गुलमोहर के साथ,
प्रतीक्षित लम्हात!
हो जाता है मेरे जीवन में,
रजनीगंधा से सपनों का
सिंदूरी प्रवेश
हठात!
बस जाता है मेरी आत्मा में,
तुम्हारे प्रेम की कल्पनाओं का एक देश॥