तेरे रूठने से
अख्तर अली शाह `अनन्त`नीमच (मध्यप्रदेश) **************************************************************** सुकेशी,तेरे रुठने से,चंचलता मेरी रूठ गई।खुशियों का कोई रिश्ता है,तेरे-मेरे इस बंधन में॥ देवी क्या तुझको पता नहीं,जब मेरा मन इठलाता है।मन तेरा भी तो साथ-साथ,बच्चा छोटा बन जाता है।सिर पर आकाश उठाते वे,जब स्वर्ग धरा पर ले आते।उन बच्चों की वो उछल-कूद,कैसी लगती है आँगन में॥खुशियों का कोई … Read more