चले जा रहे…

डॉ. उषा किरणमेरठ (उत्तरप्रदेश)******************************************* कुछ रास्ते कहीं भी जाते नहीं हैं,किसी मंजिल तक सफर कुछकभी पहुँचाते नहीं हैं,चल रहे हैं क्यूँकिचल रहे हैं सब,फितरत है चलना…तो चले जा रहे हैं…।…

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माँ…

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)********************************** माँ मुझे तू निज चरण की धूल दे दे।नेह का माँ तू सुवासित फूल दे दे॥माँ मुझे तू निज… लेखनी को नित नवल तू गान देना,मैं मनुज…

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डालें अच्छे बीज

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’बरेली(उत्तरप्रदेश)********************************* कर्म की फसल सबको ही काटनी पड़ती है,अपने रास्ते की झाड़ी खुद ही छाँटनी पड़ती है।और कोई नहीं बांटता हमारी करनी का कुफल-नफ़रत की धूल खुद ही…

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उम्मीद

अवधेश कुमार ‘अवध’ मेघालय **************************************** उम्मीदों के भँवर जाल में फँसकर मानव,सपनों के अगणित तानों को तुड़प रहा है। चंचल इन्द्रिय पर संयम के अंकुश डाले,हृदि सरगम में प्रिय गानों…

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तारों की नजर से

  ममता तिवारीजांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** जाती रजनी तिमिर कालिमा,छा रही छोर भोर लालिमा। है ठहरा हुआ एक तारा,सुदूर नील आसमां हारा। करे धरा अवलोक कर ध्यान,उड़ते पखेरू की ऊँचान। खिलती कैसे कुसुम…

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समकालीन विद्रूपताओं को लघुकथाओं का विषय बनाना होगा-प्रो. खरे

लघुकथा सम्मेलन.... मंडला(मप्र)। अधिकांश लघुकथाएं काफी संतोष देती हैं। युवा पीढ़ी के लघुकथाकारों को मेरा परामर्श है कि वे लघुकथा की विषयवस्तु अपने सामाजिक जीवन से लें,साथ ही साथ समकालीन…

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ऋणी सदा हम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************* ममता समता मातु है,नित गीता का ज्ञान।दिवस रात्रि माँ है जगत,नवप्रभात वरदान॥ मातु भवानी शारदा,करुणा सिन्धु अपार।अम्ब रूप जग चारुतम,हृदय प्रीत आगार॥ माँ जीवन…

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दीन-हीन कुंठित मजदूर

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’मुंबई(महाराष्ट्र)*************************************** परिभाषा मजदूर की,पूछ रहे हैं आप।'बबुआ' इतना जानिए,जीवन का अभिशाप॥ दीन-हीन कुंठित पतित,भूखा फिर लाचार।बबुआ है मजदूर का,इतना-सा व्यापार॥ सभी सृजन के मूल में,छिपा हुआ मजदूर।बबुआ कैसे…

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दूर वो हो जाते हैं

सरफ़राज़ हुसैन 'फ़राज़'मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)**************************** लोग जो अकसर ख़ारों से हो जाते हैं।दूर वो दिल के तारों से हो जाते हैं। आते हैं 'जब अपनी ज़िद पर' तो लोगों,दस्ते क़लम हथियारों…

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जीती बेटियाँ,जाने कितने रूप

प्रियंका सौरभहिसार(हरियाणा) ************************************ कभी बने है छाँव तो,कभी बने हैं धूप।सौरभ जीती बेटियाँ,जाने कितने रूप॥ जीती है सब बेटियाँ,कुछ ऐसे अनुबंध।दर्दों में निभते जहां,प्यार भरे संबंध॥ रही बढ़ाती मायके,बाबुल का…

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