न जाने कितने सपने
डॉ. रचना पांडे,भिलाई(छत्तीसगढ़)*********************************************** काव्य संग्रह हम और तुम से ना जाने कितने सपने आँखों में लिए,हम तुम साथ-साथ चल दिए।तुमने मुझे अपनाया,अपने करीब लाया,अब जिंदगी से मुझे कुछ ना चाहिए,जीवनभर…
डॉ. रचना पांडे,भिलाई(छत्तीसगढ़)*********************************************** काव्य संग्रह हम और तुम से ना जाने कितने सपने आँखों में लिए,हम तुम साथ-साथ चल दिए।तुमने मुझे अपनाया,अपने करीब लाया,अब जिंदगी से मुझे कुछ ना चाहिए,जीवनभर…
डॉ. रीता कुमारी ‘गामी’मधुबनी (बिहार)**************************************** काव्य संग्रह हम और तुम से चुपके से लट कोई सुलझा जाए,साया बनकर,मुझे सहला जाए।उसकी आँखों में यूँ उतर जाऊँ,मेरे सिवा,नजर कुछ ना आए।चाँद-तारे,पूरे करे…
डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************* काव्य संग्रह हम और तुम से.... फँसी इश्क की जाल में,ओढ़ मनसि संकोच।लुका-छिपी कर देखती,सजन मिलन मन सोच॥ लटक वेणियाँ करघनी,काजल नैन विशाल।पीत वसन…
रश्मि लता मिश्राबिलासपुर (छत्तीसगढ़)******************************** काव्य संग्रह हम और तुम से राधा हिय में बसे मोहन,मोहन मन बीच राधा हैंएक-दूसरे के बिना तो-दोनों ही केवल आधा हैं। उपजा सूर के मन…
बिमल तिवारी 'आत्मबोध'देवरिया(उत्तरप्रदेश)*************************** सीमाओं पर डटें,जो देश की रखवाली करतें हैं,बिना स्वार्थ हित लाभ के जो पहरेदारी करतें हैं।सर्दी शीत धूप ताप से लड़ते जो प्रतिक्षण हैं-उनकें त्याग वीरता की…
प्रियंका सौरभहिसार(हरियाणा) ********************************* पंचायत लगने लगी,राजनीति का मंच।बैठे हैं कुछ मसखरे,बनकर अब सरपंच॥ घोटालों के घाट पर,नेता करे किलोल।लिए तिरंगा हाथ में,कुर्सी की जय बोल॥ अभिजातों के हो जहाँ,लिखे सभी…
डॉ.सत्यवान सौरभहिसार (हरियाणा)************************************ हमारे देश में बुजुर्ग तेजी से बढ़ते जा रहे हैं,लेकिन उनके लिए उपलब्ध संसाधन कम होते जा रहे हैं। ऐसे में हम सबकी जिम्मेवारी बनती है कि…
राकेश सैनजालंधर(पंजाब)********************************** दिल्ली में चल रहे कथित किसान आंदोलन के नाम पर हो रही सस्ती राजनीति व मीडिया का पूरा ध्यान इस पर होने के कारण देशवासियों का ध्यान भारत…
जसवीर सिंह ‘हलधर’देहरादून( उत्तराखंड)********************************* काव्य रूपी नाव ले उस पार जाना चाहता हूँ।शब्द की पतवार से सागर हराना चाहता हूँll गद्य रूपी पंक्तियों को तोड़कर कविता बनायी,रेत में डूबी नदी…
आकांक्षा चचरा ‘रूपा’कटक(ओडिशा)************************************* मिट्टी से जन्मे मिट्टी में मिल जाने का सफर जिंदगी है,पंच तत्व का दिव्य उपहार,रब की बंदगी करने का जरियाजिदगी है।ना साथ लाए,ना ले जाइएगा,नवजात कोपलें खिलने…