विश्वास जगे

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ****************************** अब नहीं भरोसा सत्ता पर,नेता विपक्ष या नेता हो।जाति धर्म पर नित बँटे हुए,जनता समाज अभिनेता हो। भागमभाग मचा स्वारथ जग,नित झूठ कपट छल…

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सोच

मनोरमा जोशी ‘मनु’ इंदौर(मध्यप्रदेश)  ***************************************** संचित मनुज दिमाग में,भ्रमित श्रमित अचिरातकर देती गुमराह ही,व्यर्थ निरथर्क बात।हर बात में सोचना,आगे ही परिणामहै न भला चिन्तन,भला जो हाथों काम।दिल दिमाग को साफ रख,सोचा…

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पीते रोज जहर का प्याला

अमल श्रीवास्तव बिलासपुर(छत्तीसगढ़) ************************************ सुन्दर तन-मन,बुद्धि मिली थी,पर हमने यह क्या कर डाला।दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,पीते रोज जहर का प्याला॥ तन भी जर्जर,मन भी दूषित,भाव सभी कुंठित हो जाते।चीत्कार कर…

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अटल जी पर लेखन स्पर्धा में कन्हैया साहू ‘अमित’ व योगेन्द्र प्रसाद मिश्र प्रथम विजेता

मासिक प्रतियोगिता में डॉ. प्रताप मोहन 'भारतीय' और गोवर्धन दास बिन्नाणी ने पाया द्वितीय स्थान इंदौर। मातृभाषा हिन्दी और अच्छे सृजन को सम्मान देने के लिए हिंदीभाषा डॉट कॉम परिवार…

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पेड़ लगाओ

विजय कुमार,अम्बाला छावनी(हरियाणा) ************************** राघव जी शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी थे और सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहते थे। शहर में कई सामाजिक संस्थाओं के वह पदाधिकारी भी…

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मिट्टी का बदन

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’बरेली(उत्तरप्रदेश)********************************* मिट्टी का बदन और साँसें बस उधार की हैं,जाने घमंड किस चीज़ का,बात विचार की है।आदमी बस इक किरायेदार,मेहमान कुछ दिन का-नहीं उसकी हैसियत यहाँ पर जमींदार…

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प्यार निभाना मुश्किल

श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* दिल में बेशुमार प्यार था तेरे लिए,मैं तुम्हें बेपनाह प्यार करती थी,तुम याद करो ना करो मैं याद करती थीं,मैं याद करती थी। याद करो उस…

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१७ जन. को अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन

ऑस्ट्रेलियाl विश्व हिंदी सचिवालय (मॉरीशस),न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया (अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका) के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन १७ जनवरी २०२१ को भारतीय समयानुसार सुबह ११…

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नासमझ था दिल मेरा

शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’लखनऊ (उत्तरप्रदेश)************************************************* नासमझ था दिल मेरा ये उनसे जा टकराया था,उनके गलियों में जाने कौन-सा मज़ा आया थाl भटकते-फिरते उनके तलाश में जो यूं दर-बदर,और शाम होते दर्द-ए-आलम…

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पार लगाती नाव

विनोद सोनगीर ‘कवि विनोद’इन्दौर(मध्यप्रदेश)************************************* सागर पार लगाती नाव,लहरों पर न इतराती नाव,ऊपर-नीचे हिचकोले खाती,पर किसी को न गिराती नाव। पानी संग चलती जाती नाव,अपने गाँव पहुँचाती नावमंद हवा के झोंके…

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