जीत-हार में

डॉ. कुमारी कुन्दनपटना(बिहार)****************************** उलझन ही उलझन जीवन में,फिर क्यों बात धरूँ मैं मन मेंनासमझी में जिद करने की,बात बहुत बुरी होती हैकभी-कभी हार में भी,जीत छिपी होती है। क्या करना…

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सदा रहो मुदित

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* सदा रहो दम्पति मुदित, कीर्ति सुखद आनंद।सद्विवेक पुरुषार्थ सुख, खिले सुयश मकरंद॥ नव वसन्त मधु माधवी, रचना विधि अनमोल।बनो प्रिया सहधर्मिणी, प्रिय विवेक चित…

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साँस दे ज़िन्दगी को पवन

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’बिलासपुर (छत्तीसगढ़)********************************************* ज़िन्दगी ही न खुद की हुई,चाहती दूसरों को रही।बन्दगी जिस घड़ी सज गई,मांगती उस घड़ी कुछ नहीं। उम्र बचपन, जवानी, बनी,फिर बुढ़ापा मिले अनुभवी।साँस, धड़कन,…

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चराग बुझाया न जाएगा

अब्दुल हमीद इदरीसी ‘हमीद कानपुरी’कानपुर(उत्तर प्रदेश)********************************************* अब रौशनी को और सताया न जायेगा।जलता हुआ चराग बुझाया न जायेगा। मग़रूर अब किसी को बनाया न जायेगा।जो जा चुका है उसको बुलाया…

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सँजीवनी

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** आओ साथी गीत रचें…आओ साथी गीत रचें…। गीत काव्य निर्मल धारा, छँद बंद की मीन भरे,पीड़ित रुग्ण हिया औषधि, सँजीवनी बन शमन करे।आओ साथी गीत रचें…॥ स्वर…

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हिफाजत करें…यह जीवन

डॉ.अशोकपटना(बिहार)********************************** यह जीवन है,सबके लिए संजीवन हैप्रकृति से खिलवाड़ कर,रहने वाले लोगों कीखत्म कर देता है आत्मा,हृदय से आभार नहींनिकल पाता है,सब जगह दिखता है,बस आस बनकर परमात्मा। यह जलवायु…

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सपना चंद्रा की लघुकथाओं में समाज की सच्ची तस्वीर जीवंत-सिद्धेश्वर

पटना (बिहार)। जिस तरह काव्य विधा में गीत, ग़ज़ल की अपेक्षा सार्थक छंद मुक्त कविता लिखना कठिन है, उसी प्रकार गद्य विधा में उपन्यास, कहानी की अपेक्षा लघुकथा लिखना सर्वाधिक…

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समलैंगिक विवाह:अभिशाप और सामाजिक विकृति

डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी, इंदौर समलैंगिकता का मुद्दा सदियों से भारत में एक विवादास्पद विषय रहा है। समाज ने पारंपरिक रूप से विषमलैंगिकता को एक सामाजिक निर्माण के रूप में…

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नई तारीख

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन(हिमाचल प्रदेश)***************************************************** चंद्रप्रकाश शर्मा हाईकोर्ट में जज थे। अचानक एक दिन उनकी तबियत खराब हुई, और वे हमेशा की तरह अपने डॉक्टर मित्र विशाल के पास गए।…

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काश! कोई मुझको पढ़ पाए…

कवि योगेन्द्र पांडेयदेवरिया (उत्तरप्रदेश)***************************************** कभी पवन से कभी नदी सेकभी पूछता हूँ उपवन से,कहां गया है हंसा मेरा, कोई मुझको ये बतलाएकाश! कोई मुझको पढ़ पाए। कभी बादलों के आँचल…

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