सबसे हँस के बोलिये

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’ पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड) ****************************************************************************** रखते हैं उर में सदा, माया का जंजाल। उर को रीता राखिए , आयेंगे गोपाल॥ जग में ऐसे भागते, घूमें जैसे बैल। लेकिन सुख पाया नहीं, थे सपनों के शैल॥ पिय के हिय में हो छुपी, पिया हृदय की बात। ऐसी पावन नेह में, नित होता प्रभात॥ सबसे हँस के … Read more

मन मयूर स्वागत प्रिये!

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** फूलों सा कुसमित वदन,अधरामृत मुस्कान। चारुचन्द्र तनु चारुतम,हो कुदरत वरदान॥ मधुर प्रेम मन रंजिता,चाहत मिलन अपार। परिणीता वन्दित हृदय,बनूँ प्रीत रसधार॥ कमलनैन रतिभंगिमा,अन्तर्मन अभिसार। भ्रमर गुंज नित अर्चना,मनमादक श्रृंगार॥ चंचल मन मधुरिम हृदय,सुरभित भाष सुहास। मनोरमा हरिणी समा,मिलूँ हृदय अभिलास॥ पीन पयोधर शिखर सम,त्रिवली सरिता धार। लाल गाल … Read more

कर न सके दीदार…

हरीश बिष्ट अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) ******************************************************************************** दिल से दिल के प्यार का,कर न सके दीदार। जी भर अपने यार का,कर न सके दीदार॥ मन में थी सूरत बसी,होंठों पर था नाम। प्यार भरे मनुहार का,कर न सके दीदार॥ जब तक थे हम साथ में,कर न सके तब बात। खुशियों के संसार का,कर न सके दीदार॥ मन … Read more

मकर संक्रान्ति,बिहू और पोंगल पर्व

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** पौष मास स्वागत करूँ,सूर्य करे धनु त्याग। मकर राशि पावन अतिथि,महापर्व अनुराग॥ प्रथम साल त्यौहार है,मकर संक्रान्ति नाज़। सदा चतुर्दश जनवरी,कभी पञ्चदश आज॥ लोहड़ी या बिहू कहीं,है पोंगल त्यौहार। कहीं तिल संक्रान्ति यह,दधि-चूड़ा आहार॥ शस्य श्यामला खेत का,नया फसल का स्वाद। चहुँदिश है फ़ैली खुशी,मिटा वैर अवसाद॥ रंग-बिरंगी … Read more

चाय

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे मंडला(मध्यप्रदेश) *********************************************************************** चाहत लेकर चाय की,जगता हूँ मैं भोर। मिल पाये यदि चाय ना,मैं कर देता शोर॥ जीवन की संजीवनी,चाय लगे वरदान। चाय मिले तो ज़िन्दगी,लगती है आसान॥ चाय बिना कुछ भी नहीं,चाय बिना सुनसान। चाय मिले तो ठंड में,बच पाती है जान॥ चाय बिना आनंद ना,चाय बिना ना चैन। गर्म … Read more

पाॅलिथीन की थैलियाँ

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’ कोटा(राजस्थान) *********************************************************************************** पाॅलिथीन की थैलियाँ,खाकर मरती गाय। अब इन पर प्रतिबंध का,जल्दी करें उपाय॥ पाॅलिथीन की थैलियाँ,करती नाली जाम। मच्छर जिससे पनपकर,जीना करें हराम॥ पाॅलिथीन की थैलियाँ,जले तो वायु भ्रष्ट। भू के उर्वर तत्व भी,गड़कर करती नष्ट॥ * पाॅलिथीन की थैलियाँ,पैदा करती रोग। हो सब खाद्य पदार्थ में,इनका बन्द प्रयोग॥ * पाॅलिथीन … Read more

देश से बढ़कर कुछ नहीं

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** राजनीति प्रतिकूलता,देशविमुख फरमान। चाहे जितना यतन कर,सफल न हो अरमान॥ देश से बढ़ कर कुछ नहीं,समझो रे गद्दार। छोड़ो दंगा गुंडई,बनो वतन खु़द्दार॥ लोकतंत्र मतलब नहीं,तोड़ोगे तुम देश। गाओगे नापाक को,नहीं बचोगे शेष॥ कोसो तुम सरकार को,ये तेरा अधिकार। पर तोड़ो मत देश को,वरना हो धिक्कार॥ आज़ादी अभिव्यक्ति … Read more

ओस की बूँदें

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** धरती पर है ओस की,बूँदें देख हजार। मोती आभा हैं लिए,किरणों की बौछार॥ रात चाँदनी में दिखे,सुन्दरतम् मनुहार। दुग्ध धवल-सी ज्योत्सना,छाई छटा बहार॥ रातों में ठंडी हवा,बहती है पुरजोर। परिणित होते बर्फ में,देख ओस चहुँओर॥ देख चमकती है धरा,चन्द्र किरण के साथ। शीतलता अहसास भी,जब छूते हैं हाथ॥ … Read more

फूल और शूल

हरीश बिष्ट अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) ******************************************************************************** फूल बन खिले रहो कांटों संग मिले रहो, खूशबू से मिल सारा जग महकाइये। काँटों का न छोड़े साथ फूलों की है अच्छी बात, अपनों के साथ मिल खुशियां मनाइये। दु:ख-सुख मिल बांटो खुशी-खुशी दिन काटो, राह भूले-भटकों को , राह भी दिखाइये। अपनों के संग प्यारे दुनियां के रंग … Read more

प्रेमआँसू सप्तक

  अनुपम आलोक उन्नाव(उत्तरप्रदेश) ****************************************************************** कुछ आँसू पीड़ा जनित,कुछ में हर्ष अपार। कुछ में राधा की विरह,कुछ कान्हा का प्यारll कुछ आँसू में दिख रहा,मीरा का विश्वास। कुछ आँसू कातर दिखे,द्रपुद सुता के पासll स्वारथ वश बहते दिखे,कुछ छलिया दृगकोष। कुछ नयनों से छलक कर,देते हैं संतोषll कुछ आँसू बहते मिले,जिनमें था संताप। कुछ! दोषी … Read more