तेरा ज़िक्र

श्रीकांत मनोहरलाल जोशी ‘घुंघरू’ मुम्बई (महाराष्ट्र) *************************************************************************** तेरा ज़िक्र एक बार निकला, तेरे बारे में बातें हज़ार हुईl आँखों का मिलना था या एक मुलाकात थी वो, उस रात खयालों की बरसात हुईl बातों-बातों में बातें निकलती गयी, कब सूरज डूबा,कब रात हुईl उस दिन जो मुड़ के देखा था तुमने, उसी दिन से मुहब्बत की … Read more

सागर की गहराई,आँखों के प्यालों में

डॉ.नीलम कौर उदयपुर (राजस्थान) *************************************************** महफ़िल मस्ती मय का दरिया है, सागर की गहराई,आँखों के प्यालों में। साकी,शबाब,शराब,शराबी सब डूबे हैं, सावन के कारे कजरारे घने बालों में। मनमोहन की मनमोहक बाँसुरी की सुन धुन, तज लज्जा,दौड़ी आईं गोपियां,जो थीं तालों में। धड़कने मचलने लगीं,रोम-रोम सुलगने लगा, देखा जो काली दीठ-सा तिल,उनके गालों में। खोई-खोई … Read more

दो जून की रोटी

सौदामिनी खरे दामिनी रायसेन(मध्यप्रदेश) ****************************************************** जिन्दगी में बहुत मेहनत के बाद, कमाई है,दो जून रोटी। अपना स्वेद बहाया और बड़ी, लगन से पाई है,दो जून रोटी। श्रम से झिलमिलाए हैं स्वेद विन्दु, तब खाई है,दो जून रोटी। बेकसूर होकर भी डाँट खाई है, तब थाली में आई है,दो जून रोटी। मजदूरी और मजबूरी में खपाई है, … Read more

सँभलना है अगर

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष…………… अब दरख़्तों के लिए सोचें सँभलना है अगर, पेड़ की रक्षा करें खुशहाल रहना है अगर। आम,पीपल,नीम,तुलसी,बेल,बरगद के लिए हों सजग सारा ज़माना दूर चलना है अगर। पेड़-पौधों पर टिकी है ज़िन्दगी संसार की, काटिये इनको नहीं आबाद रहना है अगर। साग-सब्जी,फूल,फसलों के बिना … Read more