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सामूहिक दुष्कर्म: कड़े से कड़े दण्ड की जरूरत

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’
ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर)

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हैदराबाद घटना-विशेष रचना………………
द्वापर युग के द्रौपदी चीरहरण से लेकर `दामिनी` सामूहिक बलात्कार एवं `निर्भया` कांड से लेकर हैदराबाद की पशु चिकित्सक ‘दिशा’ बेटी की सामूहिक बलात्कार और निर्मम हत्या पर विचार किया जाए,तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि न्यायिक व्यवस्था एवं सामाजिक तंत्र में ज्ञान की कमी है,जिसे दूर करना सरकार के गृहमंत्री से लेकर माता-पिता सहित प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य हैl भारत सरकार ने बेटियों,महिलाओं, दिव्यांगों,बच्चों एवं गरीबों के शीघ्र और सशक्त न्याय हेतु ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश से लेकर न्यायपालिका के मुनसिफ तक’ को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम १९८७ के अंतर्गत कानूनी संरक्षक अर्थात कानूनी पिता नियुक्त किया हुआ है,किंतु ज्ञान के अभाव के कारण देश का सशक्त मीडिया भी ऐसे सामूहिक बलात्कार और निर्मम हत्या के मामलों की बहस-चर्चा में भारत के मुख्य न्यायाधीश से लेकर मुनसिफ तक को बुलाना तो दूर की बात,उन्हें पूछने का भी साहस नहीं हैl द्रौपदी काल में भीष्म पितामह ने हस्तिनापुर के प्रति अपनी भीष्म प्रतिज्ञा एवं कर्तव्यनिष्ठा के कारण ‘द्रौपदी चीरहरण’ पर चुप्पी साध रखी थी, जिसके कारण पीड़ित द्रौपदी न्याय के लिए विलाप करती रही,जिस पर प्रताड़ितकर्ता ठहाके लगाते रहे और सम्पूर्ण व्यवस्था चुप रहीl उसी प्रकार दामिनी क्रूरतम से क्रूरतम प्रताड़ना झेलती रही, जिसमें पुलिस प्रशासन का भ्रष्टाचार कटघरे में नंगा हुआ और समस्त प्रशासन की कर्तव्यनिष्ठा भी घास चरते दिखाई दी,मगर अंग्रेज सरकार द्वारा रचित ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ के पाठयक्रम में बदलाव नहीं किया गयाl चूंकि,भारतीय बेटियों को अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी अपनी बेटियां नहीं मानते थेl फलस्वरूप निर्भया कांड और हैदराबाद की महिला पशु चिकित्सक ‘दिशा’ (काल्पनिक नाम) का सामूहिक बलात्कार और निर्मम हत्या का मामला प्रकाश में आया,जिसके लिए पूरे देश में कड़े से कड़े दण्ड की मांग हो रही है,जो होनी भी चाहिए, किन्तु न्यायपालिका के कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं,जिनमें न्यायालय ने पुलिस की झूठी जांच के कारण बलात्कार के आरोपी युवक को ७ वर्ष सश्रम कारावास का दण्ड दिया हुआ है,जिसके सदमे से उसकी माँ मर गई, पिता पागल हो गएl बीवी ने उसे छोड़ दिया और बच्चे (जिनमें बेटा और बेटी हैं)माँ-बाप के जीवित होते हुए ‘अनाथालय’ पहुँच गये, जबकि सजा पूरी होने से कुछ माह पहले न्यायालय ने साक्ष्यों के आधार पर उक्त युवक को निर्दोष प्रमाणित करते हुए कारावास से रिहा कर दिया थाl उस पर विडंबना यह है कि वही युवक ‘न्यायिक पुनर्वास’ हेतु न्यायालय के चक्कर काट रहा हैl इसलिए, बेटियों की सम्पूर्ण सुरक्षा हेतु देश के महामहिम,भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री,राज्यपाल व मुख्यमंत्री सहित पुलिस के महानिदेशकों को देशहित में चुप्पी तोड़कर उत्तरदेह होना होगा,अन्यथा त्रेता युग की ‘सीताहरण’ के दोषी रावण का हर वर्ष पुतला फूंकना बंद कर देना चाहिए,क्योंकि धर्मग्रंथ साक्षी हैं कि ‘माता सीता’ महापंडित रावण द्वारा ‘सीताहरण’ के बावजूद ‘अग्नि परीक्षा’ में ‘पवित्र’ पाई गईं थींl

परिचय-इंदु भूषण बाली का साहित्यिक उपनाम `परवाज़ मनावरी`हैl इनकी जन्म तारीख २० सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-मनावर(वर्तमान पाकिस्तान में)हैl वर्तमान और स्थाई निवास तहसील ज्यौड़ियां,जिला-जम्मू(जम्मू कश्मीर)हैl राज्य जम्मू-कश्मीर के श्री बाली की शिक्षा-पी.यू.सी. और शिरोमणि हैl कार्यक्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों से लड़ना व आलोचना है,हालाँकि एसएसबी विभाग से सेवानिवृत्त हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप पत्रकार,समाजसेवक, लेखक एवं भारत के राष्ट्रपति पद के पूर्व प्रत्याशी रहे हैंl आपकी लेखन विधा-लघुकथा,ग़ज़ल,लेख,व्यंग्य और आलोचना इत्यादि हैl प्रकाशन में आपके खाते में ७ पुस्तकें(व्हेयर इज कांस्टिट्यूशन ? लॉ एन्ड जस्टिस ?(अंग्रेजी),कड़वे सच,मुझे न्याय दो(हिंदी) तथा डोगरी में फिट्’टे मुँह तुंदा आदि)हैंl कई अख़बारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंl लेखन के लिए कुछ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैंl अपने जीवन में विशेष उपलब्धि-अनंत मानने वाले परवाज़ मनावरी की लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्टाचार से मुक्ति हैl प्रेरणा पुंज-राष्ट्रभक्ति है तो विशेषज्ञता-संविधानिक संघर्ष एवं राष्ट्रप्रेम में जीवन समर्पित है।

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