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कांग्रेस:झटके पर झटका,भविष्य खतरे में

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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मध्यप्रदेश में लगे झटके से अभी कांग्रेस उबर नहीं पाई है,और अब उसे गुजरात में दूसरा झटका बर्दाश्त करना पड़ रहा है। गुजरात के ५ कांग्रेसी विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है। उन्हें भाजपा या किसी अन्य दल ने होटल में घेरकर नहीं बैठा रखा है। वे खुले-आम घूम रहे हैं और उन्हें जो बोलना है,वह बोल रहे हैं। उन्होंने भाजपा में भी शामिल होने की बात नहीं कही है। उन्होंने यह इस्तीफा देकर गुजरात के अपने कांग्रेसी नेताओं को यह संदेश दे दिया है कि उनके द्वारा नामजद राज्यसभा के २ सदस्य जीत नहीं पाएंगे। कांग्रेस अब सिर्फ १ सदस्य को ही भेज पाएगी,क्योंकि १८२ सदस्यों की विधानसभा में अब उसके सिर्फ ६८ सदस्य ही रह गए हैं। इन पांचों बागी सदस्यों की जमात में अभी पता नहीं कितने सदस्य और भी शामिल हो जाएंगे। राज्यसभा के लिए चुनाव २६ मार्च को होने हैं। अगले दिनों में पता नहीं क्या गुल खिलेंगे ? एक बात जरुर अच्छी हो रही है कि,जो कांग्रेसी विधायक अपनी पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवार का समर्थन नहीं कर रहे हैं,वे अपने पद से इस्तीफा दे रहे हैं लेकिन इस्तीफे के बाद वे क्या करेंगे ? पार्टी ने तो उन्हें मुअत्तिल कर दिया है। वह उन्हें निकाल बाहर भी करेगी,तब उनके पास भाजपा-प्रवेश के अलावा चारा क्या बचा रहेगा ? उनका भविष्य जो भी होगा,फिलहाल कांग्रेस दल का भविष्य खतरे में जाता दिखाई पड़ रहा है। जो हाल इस दल का मप्र में हो रहा है,वही हाल राजस्थान में भी होगा,ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं। सचिन पायलट को सिंधिया की तरह भाजपा में मिलाने के लिए ही केन्द्र की भाजपा सरकार ने सचिन के ससुर फारुक अब्दुल्ला को रिहा कर दिया है। यह अनुमान निराधार भी हो सकता है,लेकिन यह सत्य है कि कांग्रेस में नेतृत्व की शून्यता ने उसकी नई पीढ़ी का मोह-भंग कर दिया है। नई पीढ़ी के लोग डूबते जहाज से कूद-कूदकर बाहर आ रहे हैं। मप्र में चला दंगल अब सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है,उसका फैसला जो भी हो,अब भोपाल में कमल नाथ-सरकार का टिके रहना मुश्किल है। मप्र में चल रही नौटंकी ने भारतीय लोकतंत्र के माथे पर काला टीका जड़ दिया है। बाहरी शहरों की होटलों में कैदियों की तरह पड़े हुए ये विधायक क्या जनता के प्रतिनिधि होने के लायक हैं ?

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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