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सरिता

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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सरिता-
सरिता ये धमनी शिरा,मान भारती शान!
गंगा यमुना नर्मदा,चम्बल सोन समान!
चम्बल सोन समान,सरित धरती सरसाती!
बने नहर बहु बन्ध,फसल धानी लहराती!
शर्मा बाबू लाल,सजी सँवरी सम बनिता!
चली सिंधु प्रिय पंथ,उमड़ती बहती सरिता!

गहरा-
मानस मानुष प्रीत से,करे सृष्टि संचार!
सागर से गहरा वही,ढाई अक्षर प्यार!
ढाई अक्षर प्यार,युगों से बहे धरा पर!
थके लेखनी काव्य,लिखे कवि छंद बनाकर!
शर्मा बाबू लाल,मिले मन अय से पारस!
सच ही गहरा प्यार,निभाओ तन मन मानस!

आँगन-
तुलसी चौरा देहरी,आँगन चौक निवास!
राम ‘राम बोला’ तभी,वह नवजात सुभाष!
वह नवजात सुभाष,दंत द्वय मुख में धारे!
जन्म भुक्ति नक्षत्र,मात पितु सोच विचारे!
शर्मा बाबू लाल,अमर हो मरती हुलसी!
सूने आँगन तात,बाल मन भटके तुलसी!

आधा-
आधा तन नर का हुआ,आधा नारी गात!
महादेव ने सृष्टि हित,उपजाए मनुजात!
उपजाए मनुजात,कहे मनु अरु शतरूपा!
करने कर्म अनूप,नहीं थे मद छल यूपा!
शर्मा बाबू लाल,सृष्टि हित टालें बाधा!
कर्म और अधिकार,बाँटकर आधा आधा!
(यूपा=द्यूत)

यात्रा-
यात्रा करते जन बहुत,जाते देश-विदेश!
धर्म ज्ञान हित भी करे,भ्रमण सभी परिवेश!
भ्रमण सभी परिवेश,शहर हो या देहाती!
दर्शन मंदिर धाम,आरती गाई जाती!
शर्मा बाबू लाल,देख नेपाल सुमात्रा!
भ्रमण मौज आनंद,सफल सबकी हो यात्रा!

कोना-
कोना धरती का नहीं,फिर भी कहते लोग!
देश राज्य का भी कहे,कोना भाष कुयोग!
कोना भाष कुयोग,कोण को कहते ज्ञानी!
न्यून,अधिक समकोण,कहें गणितज्ञ विधानी!
शर्मा बाबू लाल,जरूरी शुभ यह होना!
भींत भींत समकोण,कक्ष भवनों में कोना!

मेला-
मेला मन के मेल का,रीति प्रीति का पंत!
सखी सहेली साथ में,मीत सनेही कंत!
मीत सनेही कंत,मिले मन की बतियाएँ!
खेलें खाएँ खूब,हँसे शिशु संग झुलाएँ!
शर्मा बाबू लाल,देख जन रेला ठेला!
परिजन पुरजन संग,चलें देखें सब मेला!
(पंत=पथ,कंत=पति)

धागा-
उलझा धागा प्रेम का,रिश्ते लुटते स्वार्थ!
ताने बाने के सखे,बदल गये निहितार्थ!
बदल गये निहितार्थ,बना धागे से मंझा!
काटे पंख पतंग,लड़े उड़ मानस झंझा!
शर्मा बाबू लाल,नेह का धागा सुलझा!
जाति धर्म संस्कार,बंधनों में जो उलझा!

बिखरी-
बिखरी छटा पतंग की,कटी अधर में डोर!
कटी लुटी फिर फट गई,विधना लेख कठोर!
विधना लेख कठोर,वृद्धजन कटी पतंगें!
खप जीवन पर्यन्त,रहन अब रही उमंगें!
शर्मा बाबू लाल,जिंदगी जिनसे निखरी!
कटी पतंग बुजर्ग,उमंगें बिखरी बिखरी!
(रहन=गिरवी)

गलती-
गलती हो यदि वैद्य से,दबे बात शमशान!
अधिवक्ता की न्याय में,भले बिगाड़े मान!
भले बिगाड़े मान,वणिक बस घाटा खाए!
यौवन बालक शिल्प,क्षम्य वह भी हो जाए!
शर्मा बाबू लाल,भूप की दीर्घ सुलगती!
शिक्षक कवि साहित्य,पड़े भारी भव गलती!

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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