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गुरु-शिष्य की अनवरत प्रक्रिया

निशा गुप्ता 
देहरादून (उत्तराखंड)

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“गुरु तो हमेशा ही हर युग में पूज्य रहे हैं, इसमें कोई अपवाद नही है। वो ही पथ प्रदर्शक बन कर समाज का निर्माण करते हैं।”
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वराय हो या गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागूं पाँय,हर युग में गुरु पूजनीय रहे हैं।
अक्षर ज्ञान और जीवन में जीविकोपार्जन का रास्ता दिखाने वाले गुरु भौतिक जगत का ज्ञान देते हुए मार्ग प्रशस्त करते हैं,जो समय की जरुरत होती है। सत्य का मार्ग व जीवन दर्शन दिखाने वाले गुरु मेरे विचार से हमारे माँ व पिता ही होते हैं,जो जीवन देकर उसको कैसे जिया जाएगा,का व्यवहारिक ज्ञान देते हैं। अपनी छोटी-छोटी अभिलाषाओं को तिलांजलि दे कर हमारे सपने पूरे करते हैं और हम बाल्य अवस्था से ही इन सब बातों का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त कर उसे आगे बढ़ाते हैं। और फिर हम भी पथ प्रदर्शक बन कर समाज को आगे बढ़ाते हुए नई पीढ़ी को ज्ञान दे देते हैं। इस तरह गुरु और शिष्य की ये प्रक्रिया निरन्तर अविराम चलती है।
आज की शिक्षा पद्धति व शिक्षक दोनों ही अपने मार्ग से भटके हुए प्रतीत होते हैं। शिक्षा का व्यवसायीकरण इसका उदाहरण है। आज शिक्षा के प्रति समर्पित भाव न शिष्य में दिखते हैं,ना गुरु में। बच्चे पैसा चढ़ाते हैं और शिक्षक सौदा कर उन्हें ज्ञान भेंट स्वरूप दे देते हैं। इससे शिक्षक व शिष्य के बीच का स्नेह व सम्मान दोनों ही ख़त्म होता नजर आ रहा है।
जिन घरों में माँ,बच्चों की गुरु बन मार्ग प्रशस्त करती है,सभ्यता और संस्कृति सिखाती है,वो बच्चे निःसन्देह उत्कृष्ट कार्य करते हैं। जीवन में उनके मन में गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा होती है और गुरु के हृदय में शिष्य को पूर्ण ज्ञान देने का भाव व स्नेह होता है। इसमें संदेह नहीं है और ऐसे गुरु निःसन्देह शिष्य के भाग्य विधाता बन कर ख्याति पाते हैं।
आज विश्व प्रगति की राह पर अग्रसर है, जिसमें निसंदेह शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान है,जो अपने शिष्यों को कौशल, परिश्रम,लगन,समर्पण सिखाता है और बौद्धिक स्तर ऊपर कर के त्याग की भावना जगाता है। इसका उत्कृष्ट उदाहरण महामारी काल में शिक्षकों का समर्पण देखते ही बनता है,जो घर में रह कर भी बच्चों में शिक्षा के प्रति समर्पण भाव जगाने में कामयाब रहे हैं। इस महामारी काल में लग रहा था कि सब कुछ बंद,तो जीवन का एक साल ठहर गया। जीवन उद्देश्य से भटक गया,मगर नहीं, शिक्षकों ने आज तकनीक का लाभ उठा कर व्यवस्था को पटरी पर चला कर रखा।
श्रेष्ठ गुरुजन का ये प्रयास अपने शिष्यों के लिए भाग्य निर्माता का काम कर रहा है।
सम्मानित शिक्षक समाज में सभी की प्रेरणा बनते हैं,और अपने कार्यों को समर्पण भाव से करते हुए नई पीढ़ी के भाग्य विधाता बनते हैं। शिक्षक का दर्जा इसीलिए सबसे ऊँचा होता है क्योंकि उसी माध्यम से जीविकोपार्जन की हर विधा निकलती है,वो चाहे राजपत्रित अधिकारी हो,चिकित्सक, अभियंता,बाबू,लेखापाल,शिक्षक, सैनिक हो या पुलिस। कुछ भी अगर आपको बनना है तो शिक्षक ही शिक्षा का आधार होता है,वो ही शिष्य का भाग्य विधाता है।
बस इतना ही कहना चाहूँगी कि गुरु की महिमा अपरम्पार है। प्रकृति का कण-कण हमारा गुरु है,बात सिर्फ़ समझ कर आगे बढ़ने की है। जीवन में हमसे मिलने वाला हर व्यक्ति हमें कुछ न कुछ सिखा कर जाता है, जो जीवन काल में हमारे काम आता ही है।
सबसे प्रेरणा लें,सम्मान दें,दूसरों के शिक्षक बनें और सबसे ज्ञान प्राप्त कर शिक्षक का सम्मान दें व लें,मगर जो गुरु जीवन में जीविकोपार्जन के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ बनाता है, उसको सम्मान देने के लिए गुरु पूजन द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को समर्पित किया गया,इसलिए ५ सितम्बर तारीख निश्चित की गई। आपका जीवन शिक्षा व देश के प्रति पूर्ण समर्पित था। उनके उत्कृष्ट समर्पण को देखते हुए सन् १९६२ में उत्कृष्ट शिक्षकों को उनके जन्मदिन पर सम्मानित कर उनके प्रति आदर भाव दिखाया,जो निरन्तर चल रहा है। ये समाज के भाग्य विधाता के लिए छोटा-सा समाज की ओर से किया जाने वाला प्रयास है।

परिचयनिशा गुप्ता की जन्मतिथि १३ जुलाई १९६२ तथा जन्म स्थान मुज़फ्फरनगर है। आपका निवास देहरादून में विष्णु रोड पर है। उत्तराखंड राज्य की निशा जी ने अकार्बनिक रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। कार्यक्षेत्र में गृह स्वामिनी होकर भी आप सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत श्रवण बाधित संस्था की प्रांतीय महिला प्रमुख हैं,तो महिला सभा सहित अन्य संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं। आप विषय विशेषज्ञ के तौर पर शालाओं में नशा मुक्ति पर भी कार्य करती हैं। लेखन विधा में कविता लिखती हैं पर मानना है कि,जो मनोभाव मेरे मन में आए,वही उकेरे जाने चाहिए। निशा जी की कविताएं, लेख,और कहानी(सामयिक विषयों पर स्थानीय सहित प्रदेश के अखबारों में भी छपी हैं। प्राप्त सम्मान की बात करें तो श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान,विश्व हिंदी रचनाकार मंच, आदि हैं। कवि सम्मेलनों में राष्ट्रीय कवियों के साथ कविता पाठ भी कर चुकी हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य- मनोभावों को सूत्र में पिरोकर सबको जागरुक करना, हिंदी के उत्कृष्ट महानुभावों से कुछ सीखना और भाषा को प्रचारित करना है।

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