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कोरोना काल में सृजित लघुकथाएं ऐतिहासिक दस्तावेज

मंडला(मप्र)।

कोरोना काल की विभीषिका ने मानवीय मूल्यों का इतना क्षरण किया है कि सामाजिक दूरियां,रिश्तों की दूरी में परिवर्तित हो गया है। आज पढ़ी गई अधिकांश लघुकथाओं में इसी विषय को रेखांकित किया गया है। सच पूछिए तो,समय संदर्भित कोरोना काल में सृजित लघुकथाएं ऐतिहासिक दस्तावेज है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन के संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार(ऑनलाइन)
व्यक्त किए। ‘कोरोना प्रकोप और बदलते सामाजिक मूल्य’ विषय पर चर्चा करते हुए सम्मेलन के मुख्य अतिथि लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि,बाजारवाद ने दिलों की दूरी तो बढ़ा ही दी थी,मौजूदा कोरोना-प्रकोप में सामाजिक दूरी भी बढ़ाने की बात की जा रही है। हम एक-दूसरे से शारीरिक दूरी तो बढ़ाएँ, मगर ऐसे संकटकाल में हमारा सामाजिक दायित्व और भी बढ़ जाता है।अपने-अपने घरों में सुरक्षित रहते हुए हमें यथासंभव मदद का हाथ बढ़ाना चाहिए। श्री द्विवेदी ने ‘न्यूट्रॉन बम’ शीर्षक लघुकथा का पाठ भी किया।
सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे (म.प्र.)ने उपरोक्त विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि-सामाजिक दूरी ने समाज के सौहार्द, निकटता,मेल-मिलाप,अंतरंगता के समग्र ताने-बाने को ही छिन्न-भिन्न करके रख दिया है। अब सुख-दुख में लोग एक-दूसरे के साथ खड़े दिखाई नहीं देते हैं।, अंतिम संस्कार व विवाह में भी गिने-चुने लोगों की उपस्थिति हो रही है। कोरोना के दूसरे दौर ने तो समाज की मूल संरचना को ही कम्पित कर दिया है। हर आदमी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
इस सम्मेलन में रामनारायण यादव सुपौल की लघुकथा ‘ब्लैक मार्केटिंग’,रशीद गौरी ‘प्राणवायु का सौदा’,राज प्रिया रानी की ‘वक्त की मार’,सिद्धेश्वर की ‘जिंदा गोश्त’ एवं प्रो. खरे की ‘यादें’ लघुकथाओं को शामिल करके पाठ किया गया।
इसमें दुर्गेश मोहन,मीना कुमारी परिहार,अपूर्व कुमार और सत्यम सिद्धेश आदि दर्शकों ने भी अपने विचार ऑनलाइन व्यक्त किए।

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