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मजबूर मजदूर

प्रेमशंकर ‘नूरपुरिया’
मोहाली(पंजाब)

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श्रमिक गति है विकास की,श्रमिक ही बुनियाद,
अब वही नींव कर रही,इमारत से फरियाद।

सड़कें भी रो पड़ी देख मजदूर के हालात,
परिश्रम उनका सिसक रहा ना सुने कोई बात।

मार्ग दिए जिन्होंने विकास के हैं वही सड़क पर,
आज विकास की पीठ पर किया है बड़ा घात।

गरीबी भुखमरी बेरोजगारी कर रही है पुकार,
इंतजाम कर ना सकी हुकूमत हो रही बेकार।

ऐसा भी समय आएगा सोचा ना होगा वतन ने,
क्यों तड़पा रही है इन्हें राजनीति से सरकार।

भूखे-नंगे तपन में राहों पर चलने को बेकरार,
अंधी बहरी और गूंगी हो गई हमारी सरकार।

वो तो फर्ज निभा रहे अपना मौत से जूझकर,
देश के निर्माता बिलख रहे,ना हिले हैं दरबार।

फर्ज निभा रहा पिता तो निभा रहे बेटे कोई,
इसी जिल्लत में तकदीर पटरियों पर सोई।

बहने लगे हैं छाले रंग रहे मुझे अपने लहू से,
सोच रही हूँ मैं कि किस्मत कितनी है खोई।

ठौर-ठिकाना ना रहा चल पड़े हैं अभागे पाँव,
कंटीले रास्तों पर ना दिखी प्रशासन की छाँव।

जिनका कसूर तक नहीं था कसूरवार हो गए,
ढेरों संघर्षों से पहुंचे तो बंद मिले अपने गाँव।

जब मन टूट गया तो जमीं अपनी पुकार उठी,
महामारी के विरुद्ध जंग हमारी हुंकार उठी।

अपनापन ना रहा बाहर लौट पड़े पैर अभागे,
छोड़ गए जिसे हम वही झोपड़ी पुचकार उठी॥

परिचय-प्रेमशंकर का लेखन में साहित्यिक नाम ‘नूरपुरिया’ है। १५ जुलाई १९९९ को आंवला(बरेली उत्तर प्रदेश)में जन्में हैं। वर्तमान में पंजाब के मोहाली स्थित सेक्टर १२३ में रहते हैं,जबकि स्थाई बसेरा नूरपुर (आंवला) में है। आपकी शिक्षा-बीए (हिंदी साहित्य) है। कार्य क्षेत्र-मोहाली ही है। लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और कविता इत्यादि है। इनकी रचना स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले नूरपुरिया की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक कार्य एवं कल्याण है। आपकी नजर में पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय कमलेश्वर,जैनेन्द्र कुमार और मोहन राकेश हैं। प्रेरणापुंज-अध्यापक हैं। देश और हिंदी के प्रति विचार-
‘जैसे ईंट पत्थर लोहा से बनती मजबूत इमारत।
वैसे सभी धर्मों से मिलकर बनता मेरा भारत॥
समस्त संस्कृति संस्कार समाये जिसमें, वह हिन्दी भाषा है हमारी।
इसे और पल्लवित करें हम सब,यह कोशिश और आशा है हमारी॥’

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