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‘कोरोना’ क्या-क्या छीनोगे!

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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इतिहास में पढ़ा था कि युद्धों में-महामारियों में बहुतों की मौत हुई थी और रात में कभी भी दाह संस्कार नहीं होते थे,पर इस ‘कोरोना’ ने सब बदल दिया है। जो संक्रमित हैं,या थे या होंगे की अलग-अलग कहानियां हैं। यह समय दुर्दिन के हैं। इस समय उदासी,निराशा,हताशा,दुःख,शोक की लहर हर घर,समाज,मुहल्ले,नगर,महानगर, देश और विश्व में लहरा रही है।
अब इस समय में समझ आ रहा है कि,जीवन हवा का एक झोंका है,पानी का बुलबुला है,और संसार में सब अनिश्चित है, पर मौत निश्चित है। वह कब,कहाँ, कैसे होगी यह कोई नहीं जानता। आजकल या हमेशा से चाहे कोई भी हो,वह मौत के चंगुल में फंसा हुआ है। इस अदृश्य जीवाणु ने क्या सितम ढाया है,जो कल्पनातीत है। हर क्षण यमराज का चक्र-पाश चल नहीं,दौड़ रहा है॥
यमराज को भस्मक रोग हो गया है,उसकी भूख कम नहीं हो रही है और उसका कारण उनको उनके अनुकूल भोजन मिल रहा है। उनको इस समय सब उम्र के इंसान मिल रहे हैं। जिस प्रकार अच्छी फसल या व्यवसाय की सफलता के लिए द्रव्य,क्षेत्र,काल,भव,भाव निमित्त,उपादान कारकों की जरुरत होती है,उसी प्रकार रोगाणुओं की प्रचुरता,देश में वातावरण की अनुकूलता, विषमकाल हैं। राजा के स्वभाव की प्रतिकूलता,दवा विक्रेताओं,जमाखोरों, कार्यकर्ताओं में नैतिकता का ह्रास,अनुकूल वातावरण न मिलना,रोगियों की अधिकता, व्यवस्थाओं की कमी और राजनीतिक लोगों में कटुता का भाव तथा एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास हो रहा है।
कोरोना संक्रमण इतना घातक हो गया है कि, कोई किसी की मदद नहीं कर पा रहा है। निजी को भी निजी मदद नहीं कर पा रहा है। चारों तरफ दुखमय वातावरण है। हर क्षण मौत के समाचारों ने सबको आंदोलित कर दिया है। स्वस्थ कब अस्वस्थ हो जाए और अस्वस्थ कब मौत के मुँह में समा जाए,कोई नहीं जानता।
विगत दिनों मेरी भतीजी,भतीजा, दामाद, साढू भाई आदि एवं परिचित एक सप्ताह में मौत के मुँह में समा गए। पूरा परिवार उदासी के आगोश में है। कहीं से भी सुखदायक समाचार नहीं मिल रहे हैं। दिनभर घुटन और अशांतमय वातावरण है। ईश्वर की आराधना में भी क्षणिक मन लगता है,कारण निजी की मृत्यु से मन को एकाग्र करना बहुत कठिन होता है।
इस समय बहुत सावधानी की जरुरत है।साथ में आत्मबल,आत्मविश्वास के साथ सकारात्मकता की जरुरत है। मानव स्वभाव असंतुलित होता हैं,उसे संतुलित करने की जरुरत है। समता भाव जरुरी है। यह कहना सरल है,पर उस पर अमल करना कठिन है, किन्तु पर उसके बिना हम क्या कर सकेंगे। जिसके ऊपर बीत रही है,वही अहसास कर सकता है,इसलिए समानुभूति की आवश्यकता है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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