कुल पृष्ठ दर्शन : 306

अपराधी उम्मीदवारःस्वागत,पर अधूरा फैसला

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************
सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने का जो आदेश जारी किया है,उसका स्वागत है लेकिन वह अधूरा है। यह तो ठीक है कि सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के अपराधों का विस्तार से ब्यौरा दें,और नामजद करने के ४८ घंटों में उसे प्रचारित करें या उम्मीदवारी का फार्म जमा करने के २ हफ्ते पहले बताएं। अदालत ने यह नहीं बताया कि वे उस ब्यौरे को कौन-से अखबारों और टीवी चैनलों पर प्रचारित करें। यह नियम तो पहले भी था,लेकिन उम्मीदवारों ने ऐसे अखबार चुने, जिन्हें बहुत कम लोग पढ़ते हैं और ऐसे टीवी चैनल चुने, जिन्हें बहुत कम लोग देखते हैं। अखबारों में अपने अपराधों के विज्ञापन इतने छोटे और चैनलों पर ऐसे वक्त दिए जाते हैं, जबकि उनका कोई अर्थ नहीं होता। इस बार अदालत ने कहा है कि राजनीतिक दलों को यह भी विस्तार से बताना होगा कि अपराधी होने के बावजूद फलां उम्मीदवार को उसने क्यों चुना ? उसकी योग्यता क्या है और उसकी उपलब्धियां कितनी हैं ? यह शर्त निरर्थक है,क्योंकि भारत में किसी भी उम्मीदवार की एक मात्र योग्यता यह है कि वह २१ साल का हो। अदालत कहती है कि उसमें चुनाव जीतने की योग्यता है,यह तर्क नहीं माना जाएगा तो वह यह बताए कि पार्टियां और कौन-सी योग्यताओं को देखे,अपने उम्मीदवार तय करते हुए ? चुनाव जीतने के लिए पैसा,जाति,संप्रदाय,झूठे वायदे,नफरत आदि अपने-आपमें योग्यता बन जाते हैं। यदि कोई दल किसी उम्मीदवार की हवाई योग्यताओं या उपलब्धियों का फर्जी ब्यौरा दे दे तो चुनाव आयोग या अदालत क्या कर सकती है ? अदालत कहती है कि यह ब्यौरा निश्चित अवधि में कोई पार्टी न दे तो उस पर चुनाव आयोग मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता है। अदालत ने यह नहीं बताया कि ऐसे मुकदमों का फैसला कितने दिनों,
महीनों या वर्षों में आएगा ? अधर में लटके हुए ४ करोड़ मुकदमों की तरह क्या यह चुनावी मुकदमा भी नहीं लटक जाएगा ? चुनाव आयोग यदि किसी उम्मीदवार या दल का चुनाव चिन्ह जब्त कर ले तो कर ले,उससे वह उनका क्या बिगाड़ लेगा ? सारी पार्टियों का तर्क यह होगा कि मुकदमा तो आप किसी पर भी चला सकते हैं,अपराध का आरोप आप किसी पर भी लगा सकते हैं,लेकिन किसी मुकदमे या आरोप से यह सिद्ध थोड़े ही हो जाता है कि वह आदमी अपराधी है। उस उम्मीदवार को,जब तक उसका अपराध सिद्ध न हो जाए,कोई अदालत या कोई चुनाव आयोग चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकता। इस समय संसद के ४३ प्रतिशत सदस्य ऐसे हैं,जिन पर अपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। पार्टियों ने ऐसे उम्मीदवारों का चुना ही क्यों ? यदि देश में लाखों लोगों को विचाराधीन कैदी (अंडरट्रायल प्रिजनर्स) की तरह बरसों जेलों में बंद रखा जा सकता है तो संगीन अपराधी नेताओं की उम्मीदवारों को रद्द क्यों नहीं किया जा सकता ? इसीलिए हमारे सारे राजनीतिक दलों ने सर्वोच्च न्यायालय के इस हुकुम का स्वागत किया है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply