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नारी का समर्पण

विद्या होवाल
नवी मुंबई(महाराष्ट्र )
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……

नारी तो बस नारी है,
उसके बिना लगती
अधूरी दुनिया सारी है,
सबसे न्यारी और प्यारी है।

विश्व निर्माता कहलाती है,
समर्पण ही उसका जीवन है
पराया घर वह अपनाती है,
रिश्तों के बंधन में आप ही बंध जाती है।

संस्कारों की पगड़ी पहन,
सब-कुछ सँवार लेती है
चरित्र और पावित्रता के दामन पर,
आँच न वह आने देती है।

असमानता के भंवर में,
हर घड़ी घूमती रहती है
बिना कहे सब सह जाती है,
दूसरों के फैसलों पर जीवन बिताती है।

नारी तो बस नारी है,
अब,सोच तुम्हें बदलनी है।
अपनों के संग मिल,अब,
अपने लिए जिंदगी तुम्हें जीनी है॥

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