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खेत में डेरा

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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प्रथम शतक………..
खेत में डेरा
हाथ में मोटी रोटी,
दूध की डोली।

तेल बिनौरी
सिर पर छबड़ी,
गीत गुंजन।

होली के रंग
चौपाल पर ताश,
चंग पे भंग।

नीम का पेड़
वानर अठखेली,
दंत निंबोली।

सम्राट यंत्र
धूप घड़ी देखता,
विद्यार्थी दल।

संग्रहालय
कांँच बॉक्स में ‘ममी’,
उत्सुक छात्रा।

गुलाब बाग
पैंथर पिंजरे में,
कूदे वानर।

मोती मंगरी
तोप पे लेते सेल्फी,
सैलानी बाला।

विजय स्तंभ
सैलानी लेते फोटो,
पद्मिनी ताल।

पुष्कर मेला
बैलगाड़ी में बैठे,
विदेशी बाला।

आना सागर
कीकर छाँव बैठा,
रेत पे मृग।

सिंधु का तट
कछुए और अण्डे,
मछली गंध

रामनवमी
श्रम में पसीजता,
भीगा किसान।

शीतलाष्टमी
पीपल पीले पात,
पूरी पक्वान्न।

चैत्र की अमा
दूल्हे जैसी पोषाक,
सजी बालिका।

गौरी पूजन
गौ के चारे में दूब,
नचे बालिका।

चैत्र अष्टमी
थाली में पुए खीर,
पानी का झारा।

रणथम्भौर
शिला पे अश्व खुर,
बाघ विहार।

आम्र मंजरी
बालकों की पंगत,
झड़ी केरियाँ।

लौकी रायता
छप्पर पर बाँस,
प्याले में दही।

रसमलाई
गौशाला में टंकियाँ,
चीनी का डिब्बा।

खीर जलेबी
रावण का पुतला,
कन्या पूजन।

बैंगन भुर्ता
दादी के हाथ मिर्च,
सिल पे बट्टा।

पुस्तकालय
ढाबे पर विद्यार्थी,
हाथ में चाय।

आलू टिकिया
तवे पर पराठा,
भीड़ में बाला।

ग्रीष्म भोर
बाला के हाथ रोटी,
दही की प्याली।

सावन वर्षा
देश भक्ति संगीत,
ध्वज सलामी।

शीत लहर
शाला में छात्रा नृत्य,
तिरंगा लहरे।

बथुआ भाजी
दही भरा कटोरा,
सेंकते जीरा।

मेथी के लड्डू
छाछ को बिलोती माँ,
गोद में शिशु।

मक्का का खेत
छूँछे में पिरो पंख,
उछले बाला।

सूर्य ग्रहण
छत पे काले चश्मे,
शोधार्थी छात्र।

शुक्ल यामिनी
माँ बेटी छत पर,
रचे मेंहदी।

आकाश गंगा
माता दिखाए ग्लोब,
महासागर।

ग्राम्य सड़क
गठरी लिए वृद्धा,
गोद में शिशु।

चिकित्सालय
कमरे में कंकाल,
खाँसती कुर्सी।

श्मशान घाट
वर्षा में रोपे वृद्ध,
वट का पौधा।

करवा चौथ
चक्र पे गीली मिट्टी,
हाथ में धागा।

संध्या लालिमा
बगीचे में किशोर,
हाथ में पव्वा।

अनाज मंडी
गायें बैलगाड़ियाँ,
भीगे अनाज।

चैत्र की भोर
लोटे में दूर्वा फूल,
कोमल हाथ।

जन्म दिवस
शीश पटल पर,
चल संदेश।

चैत्र की भोर
कागले उड़ा रही,
नवयौवना।

चैत्र की दूज
स्त्री के हाथ में थाली,
रोली चावल।

आँख में आँसू
शहीद की प्रतिमा,
हाथ में राखी।

होलिका साँझ
जलती आग पर,
फूलों का हार।

अल्फ्रैड पार्क
मूछों पर ऐंठन,
यज्ञोपवित।

महासागर
ग्लोब पर श्री लंका,
नीली सतह।

छाछ राबड़ी
चुनरी पे जौं सूखे,
छाछ करे माँ।

नीम की छाल
शिशु के फुंसी पर,
निमोली आम्र।

आँक का दूध
रूई से भरे डोडे,
ऊँट का भोज।

धतूरा बीज
शिव पिण्डी पे भोग,
बाँधते पत्ते।

मतीरा क्यारी
मेढ़ पे बैठी वृद्धा,
बीज से गिरी।

कार्तिक संध्या
खेत में दौड़े चूहे,
बाज झपट्टा।

आश्विन भोर
नीलकण्ठ दर्शन,
चारे के ढेर।

खेत में डेरा
गले लटकी बाल्टी,
ऊँटनी दुग्ध।

अश्विन भोर
खेत में बाल श्रम,
मयूर पिच्छी।

दीपयामिनी
बालिका लिए दीप,
नई चुनर।

अमरबेल
शरणार्थी शिविर,
आटे के बोरे।

चैत्र की भोर
शंखपुष्पी पंचांग,
दूध में लस्सी।

चैत्र यामिनी
वट में मधु बाल्टी,
हाथ में धुआँ।

जैवन्ती लता
पत्ते पर सुपारी,
सौंफ सुगंध।

भोर का तारा
गृहिणी को देखती,
रंभाए गाय।

मूँगफल्लियाँ
भट्टी पर कड़ाही,
फैले छिलके।

बास्ता की गंध
बाँस के झुरमुट,
खिले कलियाँ।

कुहासा भोर
खेत में नीलगाय,
भिड़े वाहन।

रंग पंचमी
बाला के हाथ पैर,
सजे मेंहदी।

पहाड़ी गाँव
किसानों के समूह,
लकड़बग्घा।

ज्येष्ठ की भोर
बोनसाई में आम,
शांत कूलर।

शीशम छाँव
वृद्ध के कंधे शिशु,
चौकी पे हाँडी।

गोंद के लड्डू
चौके में माँ के साथ,
भाई बहिन।

कुंभलगढ़
मास्क पहने खड़े,
रिक्शा चालक।

विद्युत तार
कबूतर पंक्तियाँ,
उल्लू का स्वर।

अक्षय तीज
हुआ घूमर नृत्य,
चाक पूजन।

देवउठनी
दीपक पर थाली,
कजरी आँखें।

गंगा दशमी
माँ बेटी को चुनर,
कलंगी साफे।

गेंहूँ का खेत
झोपड़ी में बालिका,
रस्सी पटली।

नकाबपोश
‘कोरोनो’ रोग जाँच,
सहमे लोग।

नगाड़ा ध्वनि
फाग में ओलावृष्टि,
आँखों में जल।

फागुनी भोर
ओस में भीगी कली,
मोर कोयल।

फाग के रंग
बाला के हाथ थाली,
रोटी पे ओले।

छान का घर
ओलों से वृद्धा बची,
थाली की ओट।

गाड़ी में घर
चूल्हे में वर्षा जल,
घन का स्वर।

साँभर झील
टोंटी पर मवेशी,
नमक चूरा।

चाँदनी रात
बबूल पे मोरनी,
ताके तेंदुआ।

जीवन बीमा
बाँस की झोंपड़ियाँ,
वृद्धा की हँसी।

मुख पे मॉस्क
गहनों के विक्रेता,
आँखों में नीर।

नारी दिवस
चूल्हा फूँकती बाला,
आँखों में डोरे।

नारी दिवस
बस में भरी भीड़,
नवीन वस्त्र।

नारी दिवस
पुल का उद्घाटन,
पिलाये नीर।

नारी दिवस
दूध दुहती वृद्धा,
पीठ पे शिशु।

नारी दिवस
गार्गी सम्मान पत्र,
मंच पे बेटी।

अर्द्धयामिनी
पथ में काला घट,
चौमुखा दीप।

बाल दिवस
लिये दीये की तुला,
सुने भाषण।

करील गंध
रसोईघर में माँ,
बरनी में तेल।

ईख का रस
नींबू तोड़े बालिका,
घूमे चरखी।

धूप दशमी
घी मरा मर्तबान,
प्रेम सुगंध।

चैत्र की भोर
कन्या के भाल टीका,
झारे में दूर्वा।

फाग पूर्णिमा
बालिका के मेंहदी,
खील बतासे।

होली का डाँडा
झूमें पकी सरसों,
खड़ा बिझूका।

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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