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भावी पीढ़ी किस ओर!

पुखराज छाजेड़
जयपुर(राजस्थान)
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असीम सुख मिल जाता जो पूर्वजों से प्राप्त संस्कारों में,
किशोर पीढ़ी खोज रही उसे,क्लब, कोठी और कारों में।

‘चाव’ पैदा हो रहा है,उच्च ब्रांड की चीजों में,
मूक स्पर्धा पनप रही है,भाई और भतीजों में।

प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा,भौतिक वस्तुओं प्रति आकर्षण,
कर्तव्य अब बोझ लग रहा,लुप्त हो रहा है समर्पण।

‘संयम’ की बात कहने वाला, ‘दकियानूस’ कहलाता है,
‘संयम’ की बात कहने वाला, ‘विकास-विरोधी’ कहलाता है।

‘आधुनिकता’ दर्शाने वाला ‘आदर्श’ यहां बन जाता है,
साहित्य से नाता टूटा ,या साहित्य से नाता तोड़ा।

फेसबुक,ट्विटर,व्हाट्सअप,इन्टरनेट पर खो गए,
‘बुद्दू बक्से’ के आगे तो बेबस और लाचार हो गए।

मात-पिता की जीवन-शैली,लगती अब बेमानी है,
फैशन-परस्ती, मौज-मस्ती ही लगती केवल सुहानी है।

माना ‘स्पर्धा’ विकास की ‘निशानी’,यह कहावत बहुत पुरानी है,’पर’ ऐसे अंधे विकास को नहीं रोका,
तो ‘आत्मा’ अवश्य झुलसानी है, ‘आत्मा’ अवश्य मुरझानी है॥

परिचय-पुखराज छाजेड़ का जन्म ३ जुलाई १९६० को ग्राम पादूकलां(जिला नागौर, राजस्थान)में हुआ है। वर्तमान में जयपुर स्थित अजमेर रोड पर आपका निवास है। भाषा ज्ञान हिंदी,राजस्थानी(मारवाड़ी) एवं अंग्रेजी का भी रखने वाले श्री छाजेड़ की शिक्षा-बी.कॉम. तथा कार्यक्षेत्र-प्लास्टिक दाना उत्पादक का है। सामाजिक गतिविधि में आप सक्रिय होकर कोषाध्यक्ष(भिक्षु साधना केंद्र समिति)हैं। परम्पराओं व किलों के राज्य राजस्थानवासी श्री छाजेड़ की लेखन विधा-काव्य है। लेखन क्षेत्र में कुछ रचनाएं वेब जाल पर छपी हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज चेतना व शौक है। आपकी नजर में पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’,जय शंकर प्रसाद एवं मैथिली शरण गुप्त हैं। प्रेरणापुंज-सामाजिक जीवन ही है। आपकी विशेषज्ञता-कविता लेखन,पत्र-व्यवहार तथा लेखांकन है। देश व हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘मेरी माँ मेरी मातृभाषा हिंदी,हिंदी मेरी आत्मा ,हिंदी मन का चैन,
हिंदी की भक्ति करूँ,दिल से दिन औ रैन।
हिंदी के गुण गाऊँ सदा,हिंदी सुख की खान,
हिंदी से होता हमें,निज गौरव का भान।
दसों दिशाएं गूँजे सदा,हिंदी के व्याख्यान,
माँ भारती स्वयं करे,हिंदी का सम्मान।
आज वर दे माँ शारदे,भर दे भक्ति का मेवा,
तन मन धन औ प्राण से,मैं कर सकूं हिंदी की सेवा।
मैं कर सकूं हिंदी की सेवा…॥ ‘

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