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देवत्व ही जीवन का सर्वोत्तम वरदान

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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असुरों से सभी घृणा करते हैं,क्योंकि उनकी भावनाओं में स्वार्थपरकता और भोग लालसा,इतनी प्रबल होती है कि वे इसके लिए दूसरों के अधिकार सुख और सुविधाएं छीन लेने में कुछ भी संकोच नहीं करते। उनके पास रहने वाले भी दुखी रहते हैं और व्यक्तिगत बुराइयों के कारण उनका निज़ जीवन तो अशांत होता ही है,दु:ख की यह अवस्था किसी के लिए भी भी अभीष्ट नहीं है।
हम सुख भोगने के लिए इस संसार में आए हैं,दुखों से हमें घृणा है,पर सुख के सही स्वरूप को भी तो समझना चाहिए। इंद्रियों के बहकावे में आकर जीवन पथ से भटक जाना मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणी के लिए श्रेयस्कर नहीं लगता। इससे हमारी शक्तियाँ पतित होती है। अशक्त होकर भी क्या कभी सुखी रहने की कल्पना की जा सकती है! भौतिक शक्तियों से संपन्न व्यक्ति का इतना सम्मान होता है कि,सभी लोग उसके लिए तरसते हैं।
फिर अध्यात्मिक शक्तियों की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। देवताओं को सभी नतमस्तक होते हैं,क्योंकि उनके पास शक्ति का अक्षय कोश माना जाता है। हम अपने देवत्व को जागृत करें,तो वैसी ही शक्ति की प्राप्ति हो हमें भी हो सकती है। तब हम सच्चे सुख की अनुभूति भी कर सकेंगे और मानव जीवन सार्थक भी होगा।
हमें असुरों की तरह नहीं,देवताओं की तरह जीना चाहिए। देवत्व ही इस जीवन का सर्वोत्तम वरदान है। हमें इस जीवन को वरदान की तरह ही जीना चाहिए।

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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