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दीपावली:ज्योति का पर्व

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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दीपावली पर्व स्पर्धा विशेष…..

वर्षाकाल के बाद अच्छी फसल होने की आस मन में जगती है। प्रतीक्षा के समय में ही दुर्गा पूजा आ जाती है और नवदुर्गा की पूजा में हिन्दू-धर्मावलंबी व्यस्त हो जाते हैं। फिर आती है विजयदशमी,कहा जाता है कि इसी दिन श्रीरामचन्द्रजी ने रावण पर विजय पाई थी! दुर्गा पूजा के त्याग और तपस्या का अनुष्ठान एकाएक हर्षोल्लास में बदल जाता है। हर्ष का यह वातावरण आगे बढ़ा तो पाँच दिन में ही आ गई शरद पूर्णिमा,जिस दिन श्रीलक्ष्मीजी का जन्म माना जाता है और उनकी पूजा हुई। यह हर्षोल्लास बढ़ता ही रहा और उसके १५ दिन बाद ही दीपावली आ गई। फिर लक्ष्मी-गणेश पूजन का अवसर आ गया।
मन हर्षातिरेक से झूम उठा और गा उठा-
दीपावली त्योहार बड़ा है,मन में रंग बेशुमार चढ़ा है;
अंधकार को दूर भगाने-प्रकाश द्वार-द्वार खड़ा है!

आएं हम सब दिवाली मनाएं,समता की खुशियाली मनाएं;
मन-वचन दरियादिली दिखाएं, जगमग-जगमग दीप जलाएं!

आज भारत क्या विश्व ‘कोरोना’ से त्रस्त है। इसकी चपेट में कौन आ जाएगा,इसका किसी को भी पता नहीं ? ऐसी स्थिति में दो पल तो खुशी के मिले और घर-घर में दीप जले!
इस निविड़ तिमिर में,दारुण दु:ख पीर में,
दो क्षण तो खुशी मिले! घर-घर में दीप जले!

छाया घनघोर अँधेरा,जाने कब हो सवेरा;
दिशाहीन पथ चलने को-निशा तो साथ मिले!
घर-घर में दीप जले!

दीपक तो जलता है,तेज क्या मिलता है;
प्रकाश की आस में-आस ज्योति तो जले!
घर-घर में दीप जले!

जिस दिन श्रीरामचन्द्रजी,श्रीलक्ष्मणजी और जगजननी सीताजी के साथ लंका में रावण को मारकर अयोध्या वापस आए,उस दिन अयोध्या में घर-घर घी के दीए जलाए गए थे। उसी दिन से दिवाली की शुरुआत हुई! यों तो दीपावली मनाने के और भी कारण हैं।
दीपावली,दिवाली या दीवाली शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिन्दू त्योहार है। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है।
दिवाली के इस पावन त्योहार के लिए हिंदू धर्म के लोग बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। यह बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए,हर किसी का मनपसंद त्योहार है। दीवाली भारत का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध त्योहार है;जो पूरे देश में मनाया जाता है। चूंकि रावण को पराजित करने और १४ साल के निर्वासन के लंबे समय के बाद भगवान राम अपने राज्य अयोध्या में लौटे थे,इसीलिए लोग आज भी इस दिन को बहुत उत्साहजनक तरीके से मनाते हैं। भगवान राम के लौटने वाले दिन,अयोध्या के लोगों ने अपने घरों और मार्गों को बड़े उत्साह के साथ अपने प्रिय का स्वागत करने के लिए प्रकाशित किया था।
यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह सिखों द्वारा भी मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा ग्वालियर जेल से अपने छठे गुरु श्री हरगोबिंद जी की रिहाई के लिए मनाया जाता है।
इसदिन के लिए घर-बाहर पूरी सफाई की जाती है। बाजारों को दुल्हन की तरह रोशनी से सजाया जाता है,ताकि वह इससे एक अद्भुत त्योहार दिख सके। इस दिन बाजार भीड़ से भरा होता है,विशेष रूप से मिठाई की दुकानें। बच्चों को बाजार से नए कपड़े, पटाखे,मिठाई,उपहार,मोमबत्तियां और खिलौने मिलते हैं। लोग अपने घरों को साफ कर त्योहार के कुछ दिन पहले से ही रोशनी से सजाते हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार दिवाली के दिन सूर्यास्त के बाद लोग देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं। वे अधिक आशीर्वाद,स्वास्थ्य,धन और उज्जवल भविष्य पाने के लिए भगवान और देवी से प्रार्थना करते हैं।
दिवाली में पटाखे भी बहुत छोड़े जाते हैं,जिससे कर्णभेदी आवाज़ तो होती ही है,आकाश भी प्रकाश की चकाचौंध से भर जाता है और स्वास्थ्य के लिए अहितकर प्रदूषण से भी धरती-आकाश भर जाता है। इसीलिए सरकार ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के माध्यम से मुख्य सड़कों पर इस वर्ष दिवाली पर आतिशबाजी की पाबंदी लगा दी है।
दिवाली मनाने की एक श्रंखला होती है। पहला दिन धनतेरस या धनत्रयोदशी के रूप में जाना जाता है, जिसे देवी लक्ष्मी की पूजा करके मनाया जाता है। लोग देवी को खुश करने के लिए आरती करते हैं और भक्ति गीत गाते हैं। दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के रूप में जाना जाता है जिसे भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करके मनाया जाता है,क्योंकि उन्होंने राक्षस राजा नरकासुर को इसी दिन मार डाला था। तीसरे दिन मुख्य दिवाली दिवस के रूप में जाना जाता है,जिसे शाम को रिश्तेदारों,दोस्तों,पड़ोसियों और जलती हुई आतिशबाजी के बीच मिठाई और उपहार वितरित करते हुए देवी लक्ष्मी और गणेश की पूजा करके मनाया जाता है। चौथे दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करके गोवर्धन पूजा के रूप में जाना जाता है। लोग अपने दरवाजे पर पूजा करके गोबर के गोवर्धन बनाते हैं। पांचवें दिन यम द्वितीया या भाईदूज के रूप में जाना जाता है जिसे भाइयों और बहनों द्वारा मनाया जाता है। बहनें अपने भाइयों को भाईदूज के त्योहार का उत्सव मनाने के लिए आमंत्रित करती हैं।
दीपावली दीपों का त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से यह ‘अन्धकार पर प्रकाश की विजय’ को दर्शाता है।
दीपावली में अनाज के रंगीन चूर्ण (आटे) का प्रयोग कर रंगोली सजाना काफी प्रसिद्ध है। इसके अनुयायी हिन्दू,सिख,जैन और बौद्ध हैं और इसका उद्देश्य धार्मिक निष्ठा,उत्सव, दीया जलाना,घर की सजावट,खरीददारी,आतिशबाज़ी,पूजा,उपहार,
दावत और मिठाइयाँ बाँटना-खिलाना है। आरम्भ धनतेरस से और समापन भैया दूज से होता है।
भारतवर्ष में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अन्धकार से प्रकाश की ओर चलो’ यह उपनिषद का मंत्र है। इसे सिख,बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
दीवाली के दिन नेपाल,भारत,श्रीलंका,म्यांमार, मारीशस,गुयाना,त्रिनिदाद और टोबैगो,सूरीनाम, मलेशिया,सिंगापुर,फिजी,पाकिस्तान व ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर सरकारी अवकाश होता है।
दिवाली नज़ारों,आवाज़ों,कला और स्वाद का त्योहार है,जिसमें प्रांतानुसार भिन्नता पाई जाती है।
दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों ‘दीप’ अर्थात ‘दीया’ व ‘आवली’ अर्थात ‘पंक्ति’ या ‘श्रंखला’ के मिश्रण से हुई है। इसके उत्सव में घरों के द्वारों,घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली को दीपाबॉली’ (बंगाली), ‘दिवाली'(गुजराती,हिन्दी),दियारी (पंजाबी,सिंधी) और तिहार (नेपाली) बोला जाता है।
प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि,कई लोग दीपावली को १४ साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं। अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को १२ वर्षों के वनवास व १ वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। कई हिंदू दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव,धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में भी मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक,शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं।
भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं।
मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में
गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए ५६ या १०८ विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
कुछ क्षेत्रों में हिन्दू दीवाली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं। नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत,ज्ञान बनाम अज्ञान,सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है।
भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में दीवाली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।
दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। दिवाली में दीप जलाने से आसपास उत्पन्न हुए कीड़े-मकोड़े भी उसकी लौ में जलकर मर जाते हैं और इस प्रकार परोक्ष रूप से ही मानव की रक्षा हो जाती है।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है।
दीवाली का त्योहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता के लिए खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार,सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीदी को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को धन,समृद्धि और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा समय है। मिठाई, ‘कैंडी’ व आतिशबाजी की ख़रीद भी इस दौरान अपनी चरम सीमा पर रहती है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान ५ हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है।
दीपावली खुशी का त्योहार है। इसमें लोग मिल-जुलकर आपस का मेल-मिलाप बढ़ाते हैं। व्यापारी वर्ग का तो इस दिन से नया साल शुरू हो जाता है। गाँव-गाँव में सन-जूट की सूखी डंठी जला कर दरिद्री को भगाने का और लक्ष्मी को घर लाने का अनुष्ठान किया जाता है।
दिवाली की अवधि में धन्वन्तरि वैद्य का जन्मदिन मनाने की भी परिपाटी है और लोग अपने को आरोग्य लाभ महसूस करते हैं।
आइए,हम भी इह दीपावली-ज्योति-पर्व में सारे दु:ख-तकलीफ़ को भूल जाएं और एक नया जीवन अनुभव करें! कोरोना से बचाव करते हुए ही दीपावली मनाएँ।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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