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हिय जले न दुर्वचन

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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मन का आपा खोने को,
बहुत रखे विकल्प।
शीतल चंदन बोले,
ऐसे हों शब्द संकल्प॥

जलानी पड़ी कितनी,
लकड़ी यत्र सर्वस्त्र।
हिय जले न दुर्वचन,
सुख का यही है मंत्र॥

निज देखे स्वयं वाणी,
कि क्या बोल रहे आप।
तोल-बोल वाणी न हो,
करने होते संताप॥

शब्द घाव-शब्द ताव,
शब्द ही मन के मोती।
कहीं अंधेरा करते,
कभी कर देते ज्योति॥

हम तुम न रहेंगे,
इस माया संसारी में।
शब्द फूल ही रहेंगे,
ये जग फुलवारी में॥

हम हैं दोनों मानव,
देवत्व पीछे न पड़ो!
मानव बन के जी ले,
समझो अब न लड़ो॥

‘मैं’ की चकरी लिपटे,
कितने ही पिस गए।
रहे हृदय लोगों के,
हम होना सीख गए॥

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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