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अपनी भाषाओं के लिए अनावश्यक संज्ञाओं को बनाने की आवश्यकता नहीं-श्री शुक्ल

‘विश्व हिंदी दिवस’ पर वैश्विक हिंदी संगोष्ठी में पुलिस महानिरीक्षक सहित वैज्ञानिक को ‘वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’

मुम्बई(महाराष्ट्र)।

महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी,वैश्विक हिंदी सम्मेलन तथा के.सी. कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में मुंबई में ११ जनवरी को वैश्विक हिंदी संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विषय था- ‘हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं का समन्वय।’ मुख्य अतिथि कुलपति रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें अपनी भाषाओं के लिए अनावश्यक संज्ञाओं को बनाने की आवश्यकता नहीं है,लेकिन अनावश्यक रूप से इनका अंग्रेजीकरण भाषा की आत्मा को ही नष्ट कर देगा।
इस संगोष्ठी के प्रारंभ में अकादमी के कार्याध्यक्ष शीतला प्रसाद दुबे ने स्वागत संबोधन प्रस्तुत किया। ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ की संयोजक डॉ. सुस्मिता भट्टाचार्य ने संस्था के उदय,उद्देश्य और इसकी गतिविधियों की संक्षिप्त जानकारी दी। प्रारंभ में डॉ. एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य'(निदेशक-वैश्विक हिंदी सम्मेलन) ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं को उतना नुकसान अंग्रेजों ने नहीं पहुंचाया जितना स्वतंत्रता के पश्चात पहुंचाया गया है। स्वतंत्रता के समय ९९ फीसदी से अधिक विद्यार्थी मातृभाषा में ही पढ़ते थे,लेकिन अब अंग्रेजी माध्यम छोटे-छोटे गांवों तक पहुंच गया है और भारतीय भाषा माध्यम के विद्यालय भी अंग्रेजी माध्यम में परिवर्तित होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘विश्व हिंदी दिवस’ उत्सव का नहीं चिंतन का दिवस है। हमें विचार करना चाहिए कि स्वतंत्रता के पश्तचात भाषा के नाम पर लाखों करोड़ के खर्च के बावजूद ऐसा क्यों हुआ ? उन्होंने कहा कि हमें अपनी भाषा से लगाव तो है लेकिन रोजगार,व्यापार-व्यवसाय तथा ज्ञान-विज्ञान आदि का अंग्रेजीकरण,जाने-अनजाने हमें अपनी भाषा से दूर करता गया है।


प्रारंभ में अमरजीत मिश्र (राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त) ने हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के प्रसार को बढ़ाने संबंधी अपना वक्तव्य बेहद प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया।
एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय की पूर्व निदेशक व हिंदी विभागाध्यक्ष गुजराती भाषी प्रो. माधुरी छेड़ा ने कहा कि न केवल हिंदी बल्कि तमाम भारतीय भाषाएं और बोलियां धीरे-धीरे पीछे छूटती जा रही हैं। नागपुर से पधारे तेलुगु भाषी वक्ता मधुसूदन नायडू ने कहा कि हिंदी के राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पर प्रसार के लिए हमें यह भी देखना होगा कि अन्य भारतीय भाषाओं के लोगों की क्या आवश्यकताएँ और अपेक्षाएँ हैं,दक्षिण के लोग किस तरह की हिंदी पसंद करते हैं। हिंदी जितनी उनके करीब जाएगी,वे उससे जुड़ेंगे।
भारतीय स्टेट बैंक के सहायक महाप्रबंधक डॉ. हीरालाल कर्णावट का कहना था कि दक्षिण भारत के लोगों की अपेक्षा होती है कि उनकी भाषाओं को भी सम्मान दिया जाए और उनकी भाषाओं को अन्य भाषा-भाषी सीखें। इसलिए हम सबका यह दायित्व है कि हम अन्य राज्यों की भाषाएं भी सीखें। साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. दुबे ने भी भारतीय भाषाओं के समन्वित विकास पर जोर देते हुए उन्हें अपनाने की बात कही। मराठी भाषी वक्ता प्रो.दयानंद भुवाल ने कहा कि जो समस्याएँ हिंदी के साथ हैं,वैसे ही समस्याएं मराठी भाषा के साथ भी हैं । इसलिए इनका पारस्परिक समन्वय बहुत ही आवश्यक है।
भारतीय भाषाओं के अंग्रेजीकरण को लेकर वक्ताओं में मत भिन्नता भी दिखी। ज़ी टीवी के प्रतिनिधि व वरिष्ठ संवाददाता संजय सिंह खबरों को अधिकतम दर्शकों तक पहुंचाने के लिए प्रचलित भाषा के अनुसार अंग्रेजी शब्दों को स्वीकारने के पक्ष में दिखे । कई अन्य वक्ता भी अंग्रेजी शब्दों को लिए जाने के पक्षधर थे,लेकिन डॉ. गुप्ता ने इस बात को रखा कि जहांँ आवश्यक हो हम वहां विदेशी भाषाओं और अंग्रेजी सहित सभी भारतीय भाषाओं से शब्दों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ें,पर अनावश्यक रूप से जीते-जागते, चलते-फिरते भारतीय भाषाओं के शब्दों को मिटा कर उन पर ज़बरन अंग्रेजी शब्द थोपना उचित न होगा। यदि ऐसा हुआ तो हमारी भाषाओं में सर्वनाम,विभक्तियां और क्रियाएं ही बचेंगी। ऐसे में शब्दावली विहीन भाषा कब तक बचेगी,कहना कठिन है।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति रजनीश कुमार शुक्ल ने भी अपने वक्तव्य में कहा कि हमें अपनी भाषाओं के लिए अनावश्यक संज्ञाओं को बनाने की आवश्यकता नहीं है,लेकिन अनावश्यक रूप से इनका अंग्रेजीकरण भाषा की आत्मा को ही नष्ट कर देगा। उन्होंने महाकवि भवभूति को उदधृत करते हुए कहा कि यदि शब्दक ज्योति न होती तो सारा संसार अज्ञान के अंधकार में डूब जाता। उन्होंने कहा कि ज्ञान होता है
भाषा के माध्यम से,ज्ञान अभिव्यक्त होता है भाषा के माध्यम से,ज्ञान विस्तारित होता है भाषा के माध्यम से,ज्ञान पुष्ट होता है और भाषा से ही ज्ञानमय विश्वदृष्टि की निर्मिति होती है। उनका कहना था कि जिस प्रकार की भाषा आज मीडिया द्वारा चलाई जा रही है वह क्रियोल है। क्रियोल बाजार के अनुकूल तो हो सकती है पर विकास और ज्ञान विज्ञान के नहीं। उन्होंने सृजनशीलता व मौलिक चिंतन के लिए अपनी भाषा को समर्थ बनाने की बात कही।
सभी वक्ताओं ने अपने वक्तव्य बेहद संजीदगी से रखे। सम्मान-मूर्ति भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के सेवानिवृत्त वरिष्ठ एवं वयोवृद्ध वैज्ञानिक डॉ. विजय भार्गव को ‘वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’ से विभूषित किया गया। उन्होंने कहा कि जब उन्हें सरकार द्वारा अनुसंधान के लिए अमेरिका भेजा गया था तो वहां जाकर उन्हें यह समझ आया कि मौलिक विज्ञान अपनी भाषा से ही संभव है,इसलिए उन्होंने हिंदी के प्रयोग व प्रसार का मार्ग चुना।
‘आयरन मैन’ के रूप में जाने जाने वाले महाराष्ट्र के पुलिस अधिकारी,पुलिस महानिरीक्षक कृष्ण प्रकाश को भी ‘वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’ से विभूषित किया गया। उन्होंने अपनी सिविल सर्विस परीक्षा हिंदी विषय लेकर उत्तीर्ण की थी। वे अभी भी हिंदी विषय को लेकर शोध कार्य कर रहे हैं। उन्होंने भाषा की विकास प्रक्रिया और उसके निभिन्न आयामों को प्रकाशित किया।
भारतीय भाषाओं के समन्वय व सहयोग के साथ मिल कर काम करने के संकल्प के साथ संगोष्ठी सम्पन्न हुई।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन)

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