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मकर संक्रान्ति,बिहू और पोंगल पर्व

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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पौष मास स्वागत करूँ,सूर्य करे धनु त्याग।
मकर राशि पावन अतिथि,महापर्व अनुराग॥

प्रथम साल त्यौहार है,मकर संक्रान्ति नाज़।
सदा चतुर्दश जनवरी,कभी पञ्चदश आज॥

लोहड़ी या बिहू कहीं,है पोंगल त्यौहार।
कहीं तिल संक्रान्ति यह,दधि-चूड़ा आहार॥

शस्य श्यामला खेत का,नया फसल का स्वाद।
चहुँदिश है फ़ैली खुशी,मिटा वैर अवसाद॥

रंग-बिरंगी पतंगें,उनकी काटी धाग।
अनोखी झाँकियाँ दिखीं,जिसमें सब सहभाग॥

कहीं सजा है भांगरा,कहीं जली है आग।
कृषकों के घर तिलकुटें,थिरकता बिहू राग॥

चाहे कोई धर्म हो,मिलकर रहे समाज।
रंग भरी पिचकारियाँ,भरे कृषक सब आज॥

मुकलित मंजर से भरा,द्रुम रसाल फलराज।
स्वागत वासन्तिक छटा,कोकिल गान समाज॥

पापड़ खिचड़ी है बनी,चटनी दही अचार।
मिला यही संदेश है,जाति धरम मिल यार॥

प्रगति राष्ट्र सबका भला,मिलकर रहें समाज।
दुःख-सुख मिल बाँटें सभी,यही मकर का राज॥

मूंगफली अर्पण किया,लोहड़ की इस आग।
सब पापों का नाश हो,रहे राष्ट्र अनुराग॥

कवि ‘निकुंज’ शुभकामना,सुखी रहें सब लोग।
राष्ट्रभक्ति सह एकता,धर्म जाति फलयोग॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली, बंगला,नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च (समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
“स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥”

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