डॉ. सुरेश जी. पत्तार ‘सौरभ
बागलकोट (कर्नाटक)
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‘करोना’ का कहर है,यह चीनी जहर है,
संसार इसका घर,टूट रहे सपने।
गाँव शहर हैं बंद,छीन लिया आनंद,
पेट को न आटा-रोटी,हँसी भूले हम।
सती पति इस बार,कर रहे तुलाभार।
मैं-मैं,तू-तू कर,लगे हैं झगड़ने।
घर पर आहाकार,करोना कृत्य विकार,
बेलन खाकर सिंह,सीखे झाडू पोंछने।
शांति-क्रांति सब भ्रांति,निकाल दिए विभ्रांति,
सरस विरस मिलें तो समरसी बनें।
संसार हो या तो प्यार,बिना ब्याज कहां सार,
भाव विभाव के बिना,न है राह चलना।
प्रेम पंछी बेहाल,न गल रही है दाल,
तड़पन मिलने की,कैसे चलें मिलने।
लेटे लेते करवटें,सोचते ‘कोरोना’ हटे,
गगन सागर भर,चाह रही उड़ना।
दिल तो तड़प कर,बना है रेत सागर,
प्रेम द्वय पंछी भाव,लग गए सूखने।
प्रेम का शोख सागर,उबला है जल कर,
बरसा दो स्वाति वर्षा,आ जा प्यास बुझाने।
टूटे परिजन,प्रेमी,सब भी होंगे आभारी,
मनु कुल मूर्त देवा,न दें चीन जीतने।
वैद्यों नारायणा:तू,ज्ञानी-विज्ञानी देव तू,
शोध कर औषध को,न दें हमें हारने॥
परिचय- डॉ.सुरेश जी. पत्तार का उपनाम ‘सौरभ’ हैl इनका निवास बागलकोट (राज्य कर्नाटक) में और यही स्थाई है। आपका जन्म कर्नाटक में ही ४ जून १९७९ का हैl आपकी शिक्षा एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. सहित पी.एच-डी.भी है। आपका कार्यक्षेत्र मूलतः सरकारी अध्यापक(हिन्दी) का हैl आपको कविता,कहानी एवं आलेख लिखने का शौक है। `नागार्जुन के काव्य में शोषित वर्ग`विषय पर आपने लघु शोध प्रबंध तैयार किया है तो कई पत्रिकाओं में आलेख,कविताएँ तथा कहानी प्रकाशित हो चुकी है।