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दुर्गा पूजा:आत्मबल जागरण का माध्यम

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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दुर्गा पूजा की धूम मची है। घर-घर में दुर्गा-सप्तशती का पाठ हो रहा है। जो लोग घर में हैं तो वो इस अनुष्ठान को सफल करने में लगे हुए हैं और जो घर से बाहर हैं,वे भी कष्ट सह कर, ‘कोरोना’ महामारी के भय को भी त्याग कर दूर देश से भी अपने घर आ रहे हैं। घर के सभी लोग पूजा-कार्य में लगे हुए हैं। मुझे भी अपने बचपन की याद आ रही है, जब मैं अकेले अपने घर से ३ मील दूर अड़हुल का फूल तोड़कर लाने खुशी-खुशी चला जाया करता था। न जाने कैसे सबमें एक आत्मबल जग गया है,जो सभी इस पूजा में लग गए हैं,पर आपने कभी सोचा कि इस पूजा-उत्सव का निहितार्थ क्या है-वह है सबमें आत्मबल जगाना।
सामान्यतया पुरुष वर्ग आत्मबल जगाने में आगे रहते हैं,पर दुर्गापूजा में नारी-शक्ति भी इसमें लग जाती हैं। ऐसा क्यों न हो ? श्री दुर्गापूजा की ३ कथा-धाराओं में जो नारी-शक्ति का जाज्वल्य रूप वर्णित किया गया है,वही भावना सबमें घर कर गई है। वैसे पुरुष-नारी दो जीवन रहते हुए भी एक जीवन जीते हैं। इसीलिए पति-पत्नी अलग-अलग नहीं हैं,और हर मोर्चे पर साथ हैं। पुरुष या नारी अपने को असहाय नहीं समझें,एक-दूसरे का बल सम्मिलित कर उसका सामना करें।
दुर्गा सप्तशती की प्रथम कथा-धारा इंगित करती है कि जब ‘आदि शक्ति से प्रकट हुए सभी प्राणी, पदार्थ,उसी में मिल गए,एक हो गए,जिसे विष्णु अनन्त कहा गया है,वह अनन्त ही निष्क्रिय,सुसुप्त जैसा हो गया;तब सृष्टि करने की एक शक्ति (ब्रह्मा), ज्यों ही अंकुरित हुई,त्यों ही उसकी विपरीत शक्ति के रूप में द्वंद्व,प्रिय-अप्रिय,अनुकूल-प्रतिकूल,
आकर्षण-विकर्षण नाम के विरोधी गुण प्रकट हो गए।’
‘उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्याभिधीयते।
योग निद्रां यदा विष्णर्जगत्येकार्णविकृते।।’
(दुर्गा सप्तशती १/६६)
इसको इस प्रकार समझ सकते हैं कि जग को चलाने वाला विष्णुरूपी पुरुषार्थ जब सो जाता है, तब स्थिति का लाभ उठाकर कुरीतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और सृष्टिकर्ता (नर-नारी) भी कमल दल सम आरामदेह आसन पर विराजकर अन्यत्र दुनिया से बेखबर हो जाते हैं तो विपत्ति का उन पर हावी हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। तभी पुरुषार्थ को जगाने की बात सामने आती है,ताकि वे विपत्तियों से पार पा सकें। पुरुषार्थ जग जाने के बाद भी अगर कुरीतियाँ-विपत्तियां बल प्रयोग से दूर नहीं होतीं तो बुद्धि बल का सहारा लिया जाता है।
और शत्रु को परास्त किया जाता है।
अतः,श्रीदुर्गासप्तशती कथा में जो देवी पूजा की बात है,वह नारी-शक्ति को उचित सम्मान देने की बात तो है ही,साथ में जीवन में आने वाली कठिनाइयों को हल करने का विधान भी उसमें निहित है। इस कथा के अंतर्गत प्रथम चरित्र में सुरथ राजा और समाधि नामक वैश्य वन स्थित मेधा ऋषि के आश्रम में जाकर उन्हें अपनी समस्या बताते हैं,जहाँ मेधा ऋषि भगवती दुर्गा का उदाहरण देकर उनका आत्मबल बढ़ाते हैं। यहाँ देवी का नाम महामाया है।
मध्यम चरित्र में सभी देवताओं की शक्ति से देवी उत्पन्न होती है,जो महिषासुर का संहार कर देवताओं को अभयदान देती हैं। इन्हें महिषासुरमर्दिनी कहा गया।
उत्तर चरित्र में देवी दुर्गा धूम्रलोचन,चण्ड-मुण्ड, रक्तबीज,निशुम्भ-शुम्भ का वध करती हैं। इन्हें नारायणी भी कहा गया है।
तीनों चरित्रों में देवी दुर्गा देवों को अभयदान देकर अंतर्ध्यान हो जाती हैं।
आज भी खोए आत्मबल को जगाने के लिए दुर्गा पूजा में लिए गए दृष्टांतों का सहारा उपलब्ध है। यह हम पर निर्भर है कि,उसे अपने जीवन में कितना उतार सकते हैं और संसार के सामने न्यायसंगत होकर अपने आत्मबल को जगा सकते हैं।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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