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मजदूरों का पलायन बनाम ‘कोरोना’

इलाश्री जायसवाल
नोएडा(उत्तरप्रदेश)

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गरीब आदमी हर बात का मारा और हर चीज़ का भूखा होता है। कभी उसे किस्मत से मार मिलती है,कभी दुःख से मिलती है,कभी समाज से मार खाता है तो कभी प्रकृति से भी। उसकी भूख भी कभी नहीं भरती,न खाने की,न पहनने की,न धन की। ऐसी ही न जाने कितनी बातें हैं जिनसे एक गरीब आदमी की व्याख्या की जाती है,पर एक बात तय है कि उसका असमय मरना तय होता है चाहे वह गरीबी से मरे,भूख से मरे,बीमारी से मरे,या नशे से मरे,पर उसको मरना ही होता है। हाँ, यह बात आवश्यक नहीं है कि वह शरीर से कब मरेगा और मन से कब मरेगा ? इस वर्ग की बात भी निराली है। कभी तो लगता है कि हमारी संस्कृति,हमारे संस्कार,हमारे हुनर, हमारी विरासत,हमारा पुराना ज़माना सब-कुछ इनसे ही है। कुंभ के मेले से लेकर मंदिरों की भीड़ तक यही लोग तो नज़र आते हैं। मध्यम वर्ग के लोग तो अपने शौक और ज़रूरतों के बीच ही झूलते रहते हैं। छुट्टी मिली तो आराम करने लगते हैं। निम्न वर्ग की तरह हर जगह जाना इनकी शान के खिलाफ़ होता है,और उच्च वर्ग के अनुसार चलना इनके बस की बात नहीं। इनकी सारी जिंदगी सामंजस्य बैठाने में,निम्न वर्ग से ऊँचा उठने में और उच्च वर्ग की बराबरी करने में ही निकल जाती है। यहाँ पर निम्न वर्ग के लोग एक तरह से जीत जाते हैं,क्योंकि उनके पास खोने के लिए,सपने देखने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं होता। इनकी दुनिया बहुत छोटी होती है और ये अपनी इस छोटी-सी दुनिया की छोटी-छोटी खुशियों में बड़ी खुशियाँ पाने की कोशिश करते हैं। ‘रोज़ कुआँ खोदकर पानी पीना’,इसी को अपनी नियति मान कर,हर समय एक जंग के लिए या किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार होते हैं।
यही कारण है,जिनके पास खेती करने के लिए ज़मीन नहीं होती या कम होती है,वे या तो अपनी ज़मीन किसी ईंट के भट्टे वाले को किराये पर दे देते हैं या परिवार का एक आदमी खेती करता है और बाकी मजदूरी करने शहर चले जाते हैं। कम समय में ज़्यादा पैसा कमाना ही इनका एकमात्र लक्ष्य होता है। अपनी कमाई से जोड़ कर कुछ पैसे अपने गाँव भी भेजते हैं-कभी कर्जा उतारने के लिए, कभी शादी-ब्याह के लिए या घर चलाने के लिए भी। कभी तो ये अपने साथ अपने बीवी -बच्चों को लाते हैं,कभी नहीं लाते या फिर कभी मियां-बीवी आ जाते हैं और बच्चों को गाँव में ही छोड़ देते हैं। इतना सब-कुछ किसके लिए ? दो वक्त की रोटी के लिए, शादी के लिए या अपने परिवार के लिए…! चूँकि,इन लोगों का गाँव से शहर आने का लक्ष्य स्पष्ट होता है,तो ऐसे में ये लक्ष्य पूर्ति होते ही या लक्ष्य पूरा न होते देख,अपने गाँव वापिस चले जाते हैं। आजकल की विषम परिस्थितियों में,जब ‘कोरोना’ विषाणु ने पूरी दुनिया को रोक दिया है,तो ऐसे में इन लोगों के लिए निर्वाह करना कठिन हो गया है। आर्थिक कठिनाइयों से निपटने के लिए सरकार की तरफ़ से कई राहत भरे कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं,पर इस वर्ग को समझाना और रोकना बहुत मुश्किल है। दिहाड़ी पर काम करने वाले या घरेलू नौकर का काम करने वाले लोगों को ये तो समझ आ रहा है कि,काम बंद है,घर से बाहर निकलना बंद है, लेकिन इन हालातों की जटिलता नहीं समझ आ रही। सरकार और पुलिस मिलकर ऐसे वर्ग के लिए खाना और ज़रूरत की चीज़ें उपलब्ध करवा रही है,किन्तु इनको काम न मिलने के कारण अपने पैतृक घर का रास्ता ही बेहतर उपाय दिखाई दे रहा है।
अब मुद्दा ये कि,अगर कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी इन लोगों के साथ ही गाँव में भी पलायन कर गई तो उसके परिणाम कितने घातक सिद्द हो सकते हैं,यह सोचकर ही शरीर में सिहरन होने लग जाती है। न तो यह लोग कोई सावधानी रखेंगे,न ही सतर्क रहेंगे एवं जाने-अनजाने में इस बीमारी को अपने घर में न्योता दे देंगे। एक घर में बीमारी का आना मतलब पूरा गाँव बीमार होना है। यह स्थिति बम विस्फ़ोट से भी ज़्यादा खतरनाक है। सभी जानते हैं कि कोरोना के लिए अभी कोई भी बचाव का टीका नहीं बना है। इसका इलाज जरुर किया जा सकता है,पर इलाज आपके लिए लाभदायक होगा या नहीं,यह आपके शारीरिक स्वास्थ्य पर भी निर्भर करता है।
सरकार को इस दिशा में और तेजी से उपाय को अमलीजामा पहनाना होगा। ऐसे में,जहाँ जनता की सुरक्षा सबसे ज़्यादा चुनौतीपूर्ण कार्य है,वहीं मजदूर वर्ग का घर वापिसी का निर्णय कहीं उन्हें हमेशा के लिए अपने घर और घरवालों से जुदा न कर दे।

परिचय-इलाश्री जायसवाल का जन्म १९७८ में २५ जून को हुआ हैl अमरोहा में जन्मीं हैंl वर्तमान में नोएडा स्थित सेक्टर-६२ में निवासरत हैंl उत्तर प्रदेश से सम्बन्ध रखने वाली इलाश्री जायसवाल की शिक्षा-एम.ए.(हिंदी-स्वर्ण पदक प्राप्त) एवं बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-हिंदी अध्यापन हैl लेखन विधा-कविता,कहानी,लेख तथा मुक्तक आदि हैl इनकी रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा पोर्टल पर भी हुआ हैl आपको राष्ट्रीय हिंदी निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार व काव्य रंगोली मातृत्व ममता सम्मान मिला हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी-साहित्य सेवा हैl इनके लिए जीवन में प्रेरणा पुंज-माता तथा पिता डॉ.कामता कमलेश(हिंदी प्राध्यापक एवं साहित्यकार)हैंl

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