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परिवार

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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एकाकी जीवन मुश्किल है
परिवार बिना जीना कैसा,
खुशी नहीं-उल्लास नहीं-
नीरस जीवन सहरा जैसा।

पर आज टूट कर डाली से
बिखरे सूखे पत्तों जैसे,
मौसम जैसे पतझड़ का हो-
नहीं जाने जीएँगे कैसे।

सब खाली-खाली लगता है
कोई भी कहीं उमंग नहीं,
था भरा हुआ परिवार कभी-
है आज कोई भी संग नहीं।

जब तक था परिवार सदा
खुशियों का डेरा रहता था,
कोई गाता था गीत मधुर,
कोई कहानियाँ कहता था।

माँ-बापू दादा-दादी चाचा
और भाई-बहन सभी,
ताऊ-ताई छुटका-छुटकी-
तब रहते साथ पड़ौसी भी।

बीस प्राणियों का मिलकर
तब साँझा चूल्हा जलता था,
गाय भैंस थे हर घर में घी-
दूध का नाला बहता था।

पर आज समय कुछ ऐसा है
परिवार टूट कर बिखर गए,
हम दो और हमारे दो लेकर-
घर से सब अलग हुए।

बीमार अगर हो जाए कोई
तो नहीं देखने वाला है,
पति-पत्नी सर्विस करते हैं-
रखवाला ऊपर वाला है।

आज सभी पछताते हैं क्यों
घर वालों से दूर हुए,
अब कोई साथ नहीं देता-
है रहने को मजबूर हुए।

भारत के गाँवों में अब भी
सब एकसाथ में रहते हैं,
दुःख-सुख भी जो आ जाए-
तो साथ अभी भी देते हैं।

परिवार तभी कहलाता है
जब सारे मिलकर साथ रहें।
एक-दूजे की व्यथा-कथा-दु:ख-
दर्द सभी इकसाथ सहें॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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