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ज़िन्दगी में कहाँँ किनारे

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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ज़िन्दगी में कहाँँ किनारे हैं,
हम सरीख़े भी बेसहारे हैं।
मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये,
है आरज़ू कि फिरते मारे हैं।

न आब है तलाश दाने की,
ये आदमी तो बेसहारा है।
ज़ख्म सिले न ख़रोंच देता जो,
कहें भी कैसे वो हमारा है।
ज़ुनून ले कर चला है,नज़र फ़लक
पे,तोड़ना भी जाे सितारे हैं।
मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये,
है आरज़ू कि फिरते मारे हैं।

चले डगर पे शहर की गलियों में,
कहाँँ हो सब कहाँ सहर नहीं ठिकाना है।
मिले भी दरिया बहुत दिलों से दूर बहुत,
खुदी पता है नहीं कहाँ पे जाना है।
सबक मिला है जमाने से,
खोजना भरोसे क़ाबिल जो भी किनारे हैं।
मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये,
है आरज़ू कि फिरते मारे हैं।

न भूल करना उन्हें समझने में,
निग़ाह ज़िनकी है बद हमें डुबायेंगे।
वो खारे दरिया की तरह तो दूरियाँ ही
भली हैं,मरें खुदी पे न अपने काम आयेंगे।
हमारी धुन है लगी हम बनें सहारे भी,
सदी तलक से जहाँ में जो बेसहारे हैं।
मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये,
है आरज़ू कि फिरते मारे हैं॥

परिचय–प्रदीपमणि तिवारी का लेखन में उपनाम `ध्रुव भोपाली` हैl आपका कर्मस्थल और निवास भोपाल (मध्यप्रदेश)हैl आजीविका के लिए आप भोपाल स्थित मंत्रालय में सहायक के रुप में कार्यरत हैंl लेखन में सब रस के कवि-शायर-लेखक होकर हास्य व व्यंग्य पर कलम अधिक चलाते हैंl इनकी ४ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैंl गत वर्षों में आपने अनेक अंतर्राज्यीय साहित्यिक यात्राएँ की हैं। म.प्र.व अन्य राज्य की संस्थाओं द्वारा आपको अनेक मानद सम्मान दिए जा चुके हैं। बाल साहित्यकार एवं साहित्य के क्षेत्र में चर्चित तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन केन्द्र भोपाल से अनुबंधित कलाकार श्री तिवारी गत १२ वर्ष से एक साहित्यिक संस्था का संचालन कर रहे हैं। आप पत्र-पत्रिका के संपादन में रत होकर प्रखर मंच संचालक भी हैं।

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