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माँ के हाथ की रोटी

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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उस रोज बरडू लुहार तेलू चमार के यहाँ किसी काम से गया था शायद। दोनों का एक दूसरे के आना-जाना यूँ भी चलता ही रहता था। दोनों की दोस्ती गाँव भर में मशहूर थी। फिर बरडू का गाँव ऐसा कि, उसमें १८ तो जातियाँ रहती हैं। तेलू के आँगन से बातचीत सभी को सुनाई दे रही थी। तेलू बोल रहा था, “क्यों भाई बरडू ? क्या गलत कह रहा था सरदूल पण्डित ? ठीक ही तो बोल रहा था वह।”
“क्या ठीक बोल रहा था ? खाक ठीक बोल रहा था वह। सदियों से इन उच्च जातियों ने हमारा शोषण किया है और अब जब हमें बाबा साहब ने आरक्षण दिया है, तो इनसे पचाया नहीं जा रहा है।” बरडू बड़ी विलक्षण व्यंग्य मुद्रा में बोल रहा था।
“ना-ना बरडू, यह तो तू गलत बोल रहा है। वह ठीक ही तो बोल रहा था कि, जातिवाद अधिकतर छोटी जातियों की ही वजह से भारत में ज्यादा फैल रहा है। इसमें उसने क्या गलत कहा ? देख, जरा सोच भला। उच्च जाति वाले तो चलो हमारे साथ माना कि आरक्षण के कारण या अपनी पुरानी जातिय श्रेष्ठता के अभिमान से रोटी-बेटी का सम्बंध नहीं बनाते, पर हम छोटी जाति वाले भी कहाँ बनाते हैं आपस में ये सब रिश्ते-नाते ? मैं चमार और तू लुहार। क्या तू मेरे घर खाएगा ? क्या तू मेरे बेटे को अपनी बेटी देगा ?, जबकि हमारी दोस्ती भी अच्छी है और उठ- बैठ भी।” तेलू ने बरडू को टोकते हुए कहा।
अब बरडू निरूतर जरूर था, पर हार मानने को तैयार नहीं था।
“तो उच्च जातियाँ भी कौन सा रोटी-बेटी का रिश्ता हमसे बनाती हैं ?” बरडू ने जरा खीज कर कहा।
“हाँ ऽऽऽ! हमसे नहीं बनाती है बरडू, पर इन्होंने ऊपर तो यह सब करना शुरू कर दिया है न। ब्राह्मण, क्षत्रिय, ठाकुर, राजपूत, कुम्हार, राणें और भी उच्च जातियों के लोग अब एक-दूसरे के यहाँ आते-जाते भी हैं और रोटी-बेटी का रिश्ता भी जोड़ते हैं। ये तो हम है कि, ऊँच-नीच बनाए बैठे हैं। मैं तो तुम्हारे घर बचपन से खाता आया हूँ, पर तुम अपनी जातिगत ऐंठ या बिरादरी के डर से अभी तक मेरे यहाँ नहीं खाते पीते हो।” तेलू ने फिर से टोकते हुए कहा।
“सो तो है तेलू !, पर क्या करें ? सामाजिक मान्यताओं और अवधारणाओं के आगे किसी की एक भी नहीं चलती। याद है वह बचपन की घटना क्या ?” बरडू ने मायूस होते हुए कहा।
“माँ के हाथ की रोटी ?” तेलू ने तपाक से कहा और उसकी आँखों की कोरें गीली हो आई।
“हाँ तेलू!” बरडू ने भी आँखों को पोंछते हुए सिर हिलाते हुए कहा।
घटना दोनों के बचपन की थी। एक दिन तेलू की माँ ने बरडू को छोटा बच्चा जानकर तेलू के साथ चुपके से रोटी खिला दी थी। कोई त्यौहार का अवसर था। तेलू की माँ ने तली हुई रोटियाँ बनाई थी। बरडू हर रोज की तरह तेलू के घर आया था। तेलू को रोटी और भल्ले खाता देख बरडू का बाल मन भी ललचा गया। उसने भी तेलू से आधी मांग ली, पर तेलू की माँ ने बरडू के बाल भाव पर तरस खाकर उसे नई रोटी दे दी और कहा इसके बारे में कभी भी किसी से कुछ मत कहना बरडू, लेकिन बच्चे तो बच्चे ही होते हैं। बरडू ने अपनी बहन को चिढ़ाते हुए तीसरे दिन कह दिया कि, उसने तेलू की माँ के हाथों की स्वादिष्ट रोटियाँ खाई और उसकी बहन को नानी के घर आखिर क्या मिला ?
बच्ची भी छोटी थी। उसने शाम को अपने पिता से सारी बात भाई की हेठी करवाने के उद्देश्य से बता दी। उस पर बरडू के पिता आगबबूला होकर इतनी बुरी तरह से बरडू को पीटने लगे कि, बेचारे की नाक से लहू की धार निकल आई। बच्चे का रोना- धोना सुनकर और बरडू के पिता को यह गाली देते सुनकर “जात बिगाड़ देगा निकम्मे तू अपनी। समाज में मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगा तू हमें।”

मुहल्ले के लोग बरडू को बच्चा कहकर उसके पिता से छुड़ा लेते हैं। उस दिन से तेलू और बरडू का एक-दूसरे के यहाँ आना-जाना ही रोक लिया गया था। अब न ही तो तेलू की माँ है, न ही बरडू का बाप। दोनों की दोस्ती तो थी ही। अब वे एक-दूसरे के पहले जैसे आते-जाते तो थे, पर खाते-पीते नहीं थे।