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फर्ज की जीत

डॉ.हरेन्द्र शर्मा ‘हर्ष’
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)
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‘कोविड-१९’ के अलग-थलग (आईसोलेशन) वार्ड में ‘कोरोना’ के रोगियों को चार्ट के अनुसार दवाई देती स्टॉफ नर्स त्रिशला का मोबाइल फोन अचानक जोरों से घनघना उठता है…इससे उसकी ध्यानतन्द्रा भंग हो जाती है। मरीजों को जल्दबाजी में ही दवाई देकर वह,स्टॉफ रुम में आकर मोबाईल में पति जितेश की कॉल देखकर उसे रिकॉल करती है। उधर से जितेश अपनी मुख्य परेशानी उसके समक्ष उजागर कर देता है-
“हैल्लो..त्रिशला,तुम जल्दी से अस्पताल के गेट पर आ जाओ ? रोबिन तुम्हें याद कर बहुत रो रहा है। कल रात से दूध भी नहीं पी रहा है। हर वक्त मम्मा पास चलो…मम्मा पास चलो की रट ही लगाए हुए है। मैं लाख कोशिशें करके थक चुका हूँ,यह चुप ही नहीं हो रहा है ?”
एक महीने से बेटे से दूर सवा वर्ष के रोबिन की यह हालत जानकर त्रिशला का कलेजा हलक में अटक गया। स्टॉफ रुम से निकल कर वह तेजी में अस्पताल के मुख्य द्वार की ओर दौड़ सी ली। साथ ही फोन पर ही पति को हिदायत देने लगी-
“ठीक है,मैं गेट पर आ रही हूँ…लेकिन रोबिन को मेरे नजदीक मत लाना,मुझसे दूर ही रखना।”
“ओ. के. डार्लिग,मैं तुमसे दूर ही रहूँगा।”
सड़क पार पापा की मोटर साईकिल पर बैठा रोबिन,गेट पर माँ का चेहरा देखते ही जोर-जोर से रो-रोकर उसकी गोद में जाने के लिए मचलने लगा-
“मम्मा मुझे गोदी ले लो…मम्मा मुझे गोदी ले लो…” की जिद करने के साथ ही वह जितेश की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगा-
“मैं मम्मा पास जाऊँगा…मैं मम्मा पास जाऊँगा…।”
बेटे की इस विहलता और विकलता को देखकर त्रिशला का दिल किरचे-किरचे बिखर गया। आँखों से अश्रुओं का अविरल प्रवाह जारी हो गया। ममता के ज्वार ने जब ज़ोर मारा तो,उसके कदम सड़क पार बेटे की तरफ बढे़। तभी फर्ज ने उसके अस्तित्व को झकझोरा-
“यह क्या करने जा रही है त्रिशला ? बेटे की ममता के आगे अपने फर्ज को भी भूल गई। मौत से जिन्दगी की जंग लड़ने वालों को क्या बेसहारा ही छोड़ देगी ? इसमें इन बेचारों का क्या कसूर है ? यह तो तुझसे जिन्दगी की भीख माँग रहे हैं। तेरा धर्म इनके इलाज में सहायता कर इनकी जान बचाना है।”
इस सोच ने उसकी अंतरआत्मा को हिला दिया। आगे बढ़ते कदम यकायक थम गए। गालों पर बह रहे आँसूओं को उसके हाथों ने कठोरता से रौंद डाला। अन्दर ही अन्दर तड़प रहे व्यथित ह्रदय से टूटे-टूटे शब्द बाहर निकले-
“बेटा मैं तुम्हें गोद में लूँगी,फुर्सत में तुम्हारे पास घर आऊँगी,तुम्हें अपने पास सुलाऊँगी। अभी तुम पापा के पास रहो। पापा की सब बात मानो,उन्हें परेशान मत करना,रोना नहीं। अब तुम रोओगे तो मैं तुमसे कुट्टी कर दूँगी, बोलूँगी नहीं।”
कुछ क्षण रुककर सिसकियों पर काबू कर त्रिशला ने बेटे को पुनः समझाने का प्रयास किया-
“आप मेरे अच्छे और प्यारे बेटे हो,मम्मा की बात मानते हैं। आज आपसे ज्यादा इन मरीजों को मेरी आवश्यकता है। मैं पहले अपना धर्म निभाऊंगी,फिर आपको प्यार करुँगी।”
दिल में दबी पीड़ा चेहरे पर उभर आई। कर्तव्य की बेड़ियों के उसके कदमों को जकड़ लिया। हिचकियों के साथ रोती सिसकती,घिसटते कदमों से वह उल्टे पाँव अस्पताल के अन्दर दाखिल हो गई। माँ का प्यार पाने को तड़पता हुआ बेटा रोता-बिलखता बाहर ही रह गया। माँ की ममता पर फर्ज ने जीत हासिल कर ली थी। अहसास हुआ….”हमने इसी पड़ाव पर कोरोना की जंग जीत ली है।”

परिचय-डॉ.हरेन्द्र कुमार शर्मा का साहित्यिक उपनाम ‘हर्ष’ है। १९६३ में १ फरवरी को ग्राम चरौरा(जिला- बुलन्द शहर)में जन्में श्री शर्मा का स्थायी बसेरा वर्तमान में बुलन्दशहर में ही है। उत्तर प्रदेश निवासी डॉ.शर्मा को हिन्दी,संस्कृत तथा अँग्रेजी भाषा का ज्ञान है।एम.ए.,बी.एड., एल.एल.बी. और विद्मावाचस्पति आपकी शिक्षा होकर कार्य क्षेत्र-अध्यापन का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत मंच संचालन, एकांकियों का मंचों पर प्रदर्शन एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं को आयोजित कराते हैं। लेखनविधा-गद्म-पद्म दोनों में ही गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी, उपन्यास और लघुकथा आदि रचते हैं। संग्रह में आपके खाते में-मोक्ष की तलाश,मुठ्ठी में कैद,कहानी संग्रह-भोर की किरण सहित उपन्यास-निराशा छोडो़ सुख जियो,जैसा चाहें जीवन पायें एवं पद्म में-हादसों का सफर,चिरागों को जला दो, इन्द्रधनुषी ग़ज़लें आदि हैं। ग़ज़ल-गीत संग्रह के साथ ही आपकी रचनाएं कई दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। अगर सम्मान की बात हो तो डॉ.शर्मा को सम्मान-पुरस्कार में-साहित्य विद्मालंकार,समाज रत्न,साहित्य सरताज,आचार्य,साहित्य श्री,रचना सम्मान, काव्य वैभव और परम श्री सम्मान मिला है। अमेरिकन बायोग्राफिकल इन्स्टीटयूट् के शोध मंडल में सलाहकार होकर हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की मानद सदस्यता भी है। इनकी विशेष उपलब्धि-सामाजिक कार्यों में प्रतिभागि ता करना,विभिन्न संस्थाओं की स्थापना,नाटक व नुक्कड़ नाटकों का प्रदर्शन है।

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