कुल पृष्ठ दर्शन : 189

You are currently viewing होली:जोश में होश न खोएं

होली:जोश में होश न खोएं

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*****************************************************

त्यौहार मनाना जरुरी है और वह भी उत्साह से। वैसे मंहगाई और आधुनिकता के कारण त्यौहार एक प्रकार की औपचारिकता बनती जा रही है, पर त्योहारों की वैज्ञानिकता बहुत अनूठी होती है। दीवाली के दौरान घर की साफ-सफाई के साथ बरसात के दौरान घरों और वातावरण में जो कुछ भी अशुद्धि होती है, उसे साफ़ करके नए माहौल में जीने का मौका मिलता है।
इसी प्रकार होली का त्यौहार है। यह ऋतु संधिकाल के कारण हम शीत ऋतु से ग्रीष्म ऋतु में प्रवेश करने के कारण ठण्ड की आदतों को छोड़कर ग्रीष्म ऋतु का स्वागत करने के साथ अपनी ऋतुचर्या और दिनचर्या को ग्रीष्म ऋतु के अनुकूल ढालें। यदि हम अचानक नई ऋतु को स्वीकार करते हैं, तब हम रोगग्रस्त होने की दिशा में बढ़ते हैं।
होली के त्यौहार की अपनी खूबसूरती होती है। इस मौसम में मनुष्य अपने-आप मस्ती महसूस करता है और वह उमंग के साथ त्यौहार को मनाता है। मनाना भी चाहिए, पर हमें जोश में होश नहीं खोना चाहिए।
वर्तमान में समाज चिंताग्रस्त, तनावग्रस्त अधिक है और इस बहाने वह भी कुछ कुंठाओं को मिल-बैठकर भूल जाना चाहता है। इस बहाने वह तरोताज़ा महसूस करता है , पर आजकल होली में कुछ विद्रूपता आने से हमें सावधानियों का पालन जरुरी है। कभी कभी हम अपने आनंद के कारण दूसरों को दुखी कर देते हैं।
होली का त्यौहार शालीनता के साथ दूसरों को ख़ुशी दे, न कि कष्ट। रंगों की जगह गुलाल का उपयोग करें। वैसे हल्दी बहुत लाभकारी और हानिरहित होती है। रसायन रंगों के कारण आँखों में नुकसान होता है। कभी-कभी बहुत अधिक हानि होती है। तों पानी का दुरूपयोग भी न हो।
क्या हम लोग आपस में मिल-बैठकर गीत-संगीत, फाग गीतों से आनंद नहीं ले सकते। आपस में मुँह मीठाकर हर्षोल्लास से होली नहीं खेल सकते। होलिका दहन में लकड़ी की जगह कंडों आदि का उपयोग करें। हर मुहल्ले में एक जगह मिल-बैठकर होलिका दहन का कार्यक्रम करें।
होली के रंग के बाद पानी से धो कर जैसे तरोताजगी महसूस करते हैं, ऐसे ही इस समय पुरानी ग्लानि, बुराई, दुश्मनी को धोएं और यह अपेक्षा रखें कि अगले साल इस त्यौहार तक तरोताज़ा और मित्रवत से रिश्ते बिताएं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply