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हममें ही भगवान,मन से करो पुकार

प्रेमशंकर ‘नूरपुरिया’
मोहाली(पंजाब)

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बुद्ध पूर्णिमा विशेष…………….
जब कमी हुई ज्ञान की,बढ़ गया अभिमान,
गरीबी लाचार बनी,टूटता स्वाभिमान।
तब ज्ञान का सूर्य उगा,चमका सभी जहान,
ज्ञान सबको बांट दिया,जब आए बुद्ध महान॥

देख असमानता समाज में किए खुद से युद्ध घने,
करके ध्यान मन में तथागत परम ज्ञानी बुद्ध बने।
समाज में घृणा और भेदभाव की जड़ें मजबूत थी,
समान नहीं सभी कोई आदर्श,तो दास कोई दूत थीं॥

भेदभाव की पहली लड़ाई लड़ी,
असमानता की फिर छुड़ाई कड़ी।
अहिंसा से जीत लिए सभी युद्ध,
पाकर ज्ञान बने थे तथागत बुद्ध॥

सादर नमन कर बुद्ध को,करो उनका ध्यान,
पढ़ो तुम उनके धम्म को,जानो उनका ज्ञान।
तुम ज्ञान प्रज्ञा शील को,कृत्य में लो उतार,
हममें ही भगवान है,मन से करो पुकार॥

बुद्ध ने ही सब जग को सत्य का मार्ग बतलाया,
प्रकृति नहीं करती है भेदभाव यह तर्क सुलझाया।
पंच तत्वों ने ना कभी घृणा असमानता दिखलाई,
सब जन हैं समान यह सरलता से बुद्ध ने समझाई॥

अंधविश्वास के उखाड़ दिए पाँव,
फिर लगे ना कभी लाचारी दांव।
तब वातावरण कर दिया शुद्ध,
पाकर ज्ञान बने थे तथागत बुद्ध॥

कही बात तथागत ने,सुनो लगा कर ध्यान,
बात किसी की कैसी भी,ना लो ऐसे मान।
हो किसी की बातें वो,हो या मेरी बात।
तर्क पर खरी न उतरे,न मानो कोई बात॥

प्रेम का सागर भरा समा लिया था सारा जहान,
विराट व्यक्तित्व था जय जय जय बुद्ध महान।
बुद्धि और तर्क से किया काम,वासना का नाश,
किया अपने अथाह परम ज्ञान से बुद्ध ने प्रकाश॥

करके ध्यान खुद को लिया जीत,
अहंकार तोड़कर फैलाई थी मीत।
उनको भी दिया ज्ञान जो थे क्रुद्ध,
पाकर ज्ञान बने थे तथागत बुद्ध॥

परिचय-प्रेमशंकर का लेखन में साहित्यिक नाम ‘नूरपुरिया’ है। १५ जुलाई १९९९ को आंवला(बरेली उत्तर प्रदेश)में जन्में हैं। वर्तमान में पंजाब के मोहाली स्थित सेक्टर १२३ में रहते हैं,जबकि स्थाई बसेरा नूरपुर (आंवला) में है। आपकी शिक्षा-बीए (हिंदी साहित्य) है। कार्य क्षेत्र-मोहाली ही है। लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और कविता इत्यादि है। इनकी रचना स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले नूरपुरिया की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक कार्य एवं कल्याण है। आपकी नजर में पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय कमलेश्वर,जैनेन्द्र कुमार और मोहन राकेश हैं। प्रेरणापुंज-अध्यापक हैं। देश और हिंदी के प्रति विचार-
‘जैसे ईंट पत्थर लोहा से बनती मजबूत इमारत।
वैसे सभी धर्मों से मिलकर बनता मेरा भारत॥
समस्त संस्कृति संस्कार समाये जिसमें, वह हिन्दी भाषा है हमारी।
इसे और पल्लवित करें हम सब,यह कोशिश और आशा है हमारी॥’

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