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जिन्दगी के रूप

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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कहीं तेज तर्रार जिन्दगी,
कहीं फूल का हार जिन्दगी।

कहीं बर्फ-सी ठंडक रखे,
कहीं सुर्ख अंगार जिन्दगी।

कहीं माथे की बिंदिया जैसी,
कहीं पायल झंकार जिन्दगी।

कहीं ज्येष्ठ की दुपहरी-सी,
कहीं सावन फुहार जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी अँसुवन भीगी,
कहीं लगे खुशगवार जिन्दगी।

कहीं पेड़ खजूर-सी लगती,
कहीं कदम की डाल जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी बरस सरीखी,
कहीं लगे दिन चार जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी सीधी-सादी,
कहीं लगे श्रृंगार जिन्दगी।

कहीं अमावस-सी अँधियारी,
कहीं पूनम उजियार जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी भाषण जैसी,
कहीं लगे उद्गार जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी खाली डब्बा,
कहीं भरे भंडार जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी काली,जुल्मी,
कहीं धवल चमकार जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी शुष्क,कसैली,
कहीं लगे रसधार जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी भिक्षुक जैसी,
कहीं सेठ कलदार जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी सूट-सफारी,
कहीं लगे फटेहाल जिन्दगी।

कहीं जिन्दगी भाग रही है,
कहीं मद्धिम रफ्तार जिन्दगी।

जाने कितने रूप लिए ये,
अद्भुत है उपहार जिन्दगी॥

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