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सामाजिक सम्बन्धों को और मजबूत कर देती है दूरी..

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..


“दूर नहीं वो होते,जो दिल के करीब होते हैं,ये तो वक्त की मजबूरी है,तन और मन एक नहीं होते हैं।”
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,समाज में रहकर ही जीवन संभव है,और आज इस समाज की सुरक्षा के लिए दूरी भी जरूरी हो गयी है। किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए शारीरिक रूप से नजदीक होना जरूरी नहीं, जरूरत है तो केवल भरोसे की,विश्वास की। किसी भी संबंध में आत्मीयता होनी चाहिए।
वैसे भी आजकल बच्चे पढ़-लिख कर दूर चले जाते हैं,परिवार अलग-अलग हो जाते हैं। कभी-कभी परिस्थितिवश हमें दोस्तों और समाज से भी दूरी बनानी पड़ती है,कभी अपने लिए,कभी अपनों के लिए।
भला हो कि ये ‘ई’ युग है,जिसके जरिए हम एक- दूसरे से दूर होकर भी दूर नहीं हैं,हम एक-दूसरे से जुड़े हैं। अंतरजाल(इंटरनेट) के जरिए जहाँ एक ओर दूर बैठे रिश्तेदारों,दोस्तों से बातें होती रहती हैं, वहीं ऐसी महामारी के दौर में भी बच्चे ऑनलाइन अपनी पढ़ाई कर रहे हैं,देश-विदेश की सूचनाएं मिल रही हैं।प्रकृति भी स्वयं को पुनर्जीवित कर रही है। दूर रहने से सामाजिक संबंधों पर असर नहीं पड़ता, बल्कि कुछ समय की दूरी हमारे सामाजिक संबंधों को और मजबूत कर देती है। एक तो हम स्वस्थ रहेंगें,तभी किसी भी रिश्ते को निभा पाएंगें,दूसरे अंतर्कलह से भी बचे रहेंगे। कभी-कभी दूर रहकर भी रिश्ते मजबूत होते हैं।
कुछ रिश्ते सामाजिक ही होते हैं,जिनसे रक्त का नहीं,कर्म का संबंध होता है जो प्रकृति के प्रकोप और आपदाओं में हमारी सहायता के लिए ही बने होते हैं। इनसे हमारा सीधा संबंध नहीं होता,फिर भी अपनी जान पर खेलकर हमारी सहायता करते हैं। ये रिश्ते अनमोल होते हैं,जैसे-चिकित्सक, चिकित्साकर्मी,सफाईकर्मी,पुलिस,सेनाकर्मी हमारी सेवा में तत्पर रहते हैं,तब हम चैन की श्वांस ले पाते हैं। हमें भी इनका आभार व्यक्त करना चाहिए।
हमारी सुरक्षा के नियमों का पालन करके इनकी हर सम्भव सहायता करना चाहिए।
शारीरिक दूरी संबंधों में दूरी न बन पाए,इसलिए हमें हर सामाजिक संबंध में विश्वास और आस्था रखनी चाहिए। ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना…’ की तर्ज पर मेरे कुछ शब्द-
‘देखो-देखो आया कोरोना,
आया तालाबंदी का जमाना।
घर में रह के काम तू कर,
अपनों की जरा परवाह तो कर।
अपनों के लिए ही दूरी बनाना,
आया तालाबंदी का जमाना…॥

हाथ धो और मास्क पहन,
जरूरी काम से ही बाहर जाना।
आया तालाबंदी का जमाना….
विनती करते मोदी जी हमसे,
बाहर न निकलो तुम घर से।
सुरक्षा में सबको है साथ निभाना,
आया तालाबंदी का जमाना…॥

डॉक्टर,पुलिस,समाजसेवी रक्षा हैं करते,
घर छोड़ सेवा हैं करते।
उन सबकी भी हिम्मत बढ़ाना,
आया तालाबंदी का जमाना…॥’

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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