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सरकार थोड़ी हिम्मत और करे

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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भारत में जनता के क्रोध का जो बरगद उग आया है,सरकार ने उसकी डालें और पत्ते तो तोड़ दिए हैं लेकिन उसकी जहरीली जड़ ज्यों की त्यों है। गृह राज्य मंत्री ने संसद में साफ़-साफ़ कह दिया है कि इस समय देश में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर जैसी कोई चीज बनने ही नहीं जा रही है। इस संबंध में सरकार ने कोई फैसला ही नहीं किया है। उन्होंने सांसदों से यह भी कहा कि `राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर` तैयार करते वक्त याने जन-गणना करते वक्त नागरिकों को बिल्कुल भी तंग नहीं किया जाएगा। उन्हें कोई भी दस्तावेज दिखाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। वे चाहेंगे तो ही अपना `आधार` कार्ड दिखाएंगे। दूसरे शब्दों में इस जन-गणना के दौरान नागरिकता अपने-आपमें कोई मुद्दा ही नहीं होगा। भारत में उस समय जो भी रहता हुआ मिलेगा,उसे गिन लिया जाएगा। यह तो बहुत अच्छी बात है,लेकिन देश में जो विवाद चल रहा है,जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं, विदेशों में भारत की बदनामी हो रही है,वह इसके कारण थोड़े ही हो रही है। वह हो रही है-नागरिकता रजिस्टर और नए नागरिकता कानून के कारण। इसमें से पहले हिस्से पर तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रश्न-चिन्ह लगा दिया था। उन्होंने २२ दिसम्बर २०१९ को रामलीला मैदान में साफ़-साफ़ कह दिया कि नागरिकता रजिस्टर को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है। उस पर कोई फैसला ही नहीं हुआ है, लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में २ बार कहा कि नागरिकता रजिस्टर बनेगा और घुसपैठियों को निकाल बाहर किया जाएगा। अब देश के लोग किसकी बात पर भरोसा करें ? मोदी की बात पर या अमित शाह की बात पर ? अपने राज्य मंत्री की जगह खुद अमित शाह को संसद में स्पष्टीकरण करना चाहिए। (यह भी संभव है कि अमित शाह नागरिकता रजिस्टर और जनसंख्या रजिस्टर को एक ही समझ रहे हों)। यहां यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि नागरिकता रजिस्टर का विचार ही देश में इतनी बड़ी बगावत का कारण क्यों बन गया है ?,क्योंकि `नागरिकता संशोधन कानून` इस बगावत की असली जड़ है। पड़ौसी मुस्लिम देशों के शरणार्थियों में से मुसलमानों को बाहर करके सरकार ने फिजूल की मुसीबत मोल ले ली है। भारतीय मुसलमानों या गैर-मुसलमानों का इससे कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन उनके दिल में सरकार की नीयत पर शक बैठ गया है। जैसे नागरिकता रजिस्टर के बारे में सरकार ने दो-टूक बात कही है,वैसे ही वह इस नए नागरिकता कानून में सुधार की बात भी कह दे तो लोग अपने-आप शांत हो जाएंगे।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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