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गौरवशाली इतिहास है भारतीय नौसेना का

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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४ दिसम्बर- नौसेना दिवस विशेष………….
४ दिसम्बर को `नौसेना दिवस` मनाया जाता है। बहुत से लोग यह अनुमान लगाएंगे कि शायद इसी दिन भारतीय नौसेना अस्तित्व में आई थी,लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल नौसेना दिवस भारतीय नौसेना के पराक्रम का प्रतीक है। इसी तारीख ४ दिसम्बर १९७१ को भारतीय नौसेना ने कराची पोर्ट को तबाह कर दिया था,जो पाकिस्तान के लिए रीढ़ की हड्डी के समान थाl १९७१ का साल पाकिस्तान के इतिहास में शायद सबसे दुर्भाग्यपूर्ण साल है। यह वही साल था,जब पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बांग्लादेश का जन्म हुआ। इसी साल पाकिस्तान के करीब ९० हजार सैनिकों को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा। इतनी बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण अपने-आपमें इतिहास है।
वैसे तो १९७१ के युद्ध में भारतीय सेना के तीनों अंगों यानी थल सेना,वायु सेना और नौसेना ने जबर्दस्त काम किए,लेकिन भारतीय नौसेना का काम काफी उल्लेखनीय था। भारतीय वायु सेना और भारतीय थल सेना ने दुश्मन के सैनिकों को रोकने का काम किया। दूसरी तरफ भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी बंदरगाह वाले रास्तों को बंद कर दिया। भारतीय नौसेना ने एक ही रात में पाकिस्तान की तीन जलपोतों को तबाह कर दिया था। इससे पाकिस्तान को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
भारतीय नौसेना के इस मिशन का नाम `ऑपरेशन ट्राइडेंट` था। इस मिशन के तहत भारतीय नौसेना के मिसाइल युक्त पोतों ने कराची पोर्ट पर हमला किया। कराची पोर्ट की अहमियत को देखकर इसे निशाने पर लिया गया था। कराची पोर्ट एक तरफ पाकिस्तानी नौसेना का मुख्यालय था और दूसरी ओर पाकिस्तान का तेल भंडार भी वहां था। दुनिया के इस सबसे साहसिक मिशन का नेतृत्व एडमिरल सरदारीलाल मथरादास नंदा कर रहे थे। मिशन की योजना नौसेना के बेड़ा संचालन अधिकारी की भूमिका गुलाब मोहनलाल हीरानंदानी ने बनाई थी।
भारतीय नौसेना ने कई बाधाओं का सामना करते हुए इस मिशन को अंजाम दिया था। एक तो भारतीय नौसेना के रेडार की सीमा बहुत सीमित थी,दूसरी ओर उसकी ईंधन क्षमता भी बहुत कम थी,लेकिन भारतीय नौसेना साहस और उत्कृष्टता का प्रदर्शन करते हुए मिसाइल फिट पोतों को कराची पोर्ट के बिल्कुल करीब ले गई,ताकि पूरी क्षमता से हमला कर सके।
भारत के लिए सबसे बड़ी कामयाबी और पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी तबाही पाकिस्तानी नौसेना की पनडुब्बी पीएनएस `गाजी` का तबाह होना था। पीएनएस गाजी को पाकिस्तान ने अमेरिका से लीज पर लिया था। उस समय गाजी का जवाब दक्षिण एशिया में किसी देश के पास नहीं था। उसके अलावा वह इकलौती पनडुब्बी थी,जिसके अंदर बंगाल की खाड़ी तक पहुंचने के लिए ११००० समुद्री मील दूरी तय करने की क्षमता थी। वह कहावत है न कि `शिकारी खुद शिकार हो गया`,कुछ ऐसा ही गाजी के साथ हुआ। पाकिस्तान की ओर से गाजी को भेजा गया था कि भारतीय नौसेना के विमानवाहक जहाज आईएनएस `विक्रांत` को खोजकर तबाह करे,लेकिन इस चक्कर में गाजी खुद तबाह हो गई।
भारतीय नौसेना का इतिहास १६१२ से मिलता है। ५ सितम्बर १६१२ को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने समुद्री डकैतों और अपने प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबले के लिए एक छोटे से समुद्री रक्षक बेड़े का गठन किया। इसे ईस्ट इंडिया कम्पनी के `मरीन` के नाम से जाना गया। यह बेड़ा सूरत (गुजरात) के करीब स्वाली में स्थित था। इसके जिम्मे कैम्बे की खाड़ी और तापती एवं नर्मदा नदी में ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापार की रक्षा करना था। इस बल के अधिकारियों और जवानों ने अरब सागर, फारस की खाड़ी और भारतीय तटों के सर्वे में अहम भूमिका निभाई।
हमें अपनी नौसेना पर नाज़ के साथ यह भरोसा है कि,इनके कारण हमारे देश की समुद्री सीमा के साथ देश की पूर्ण सुरक्षा है। इसका गौरवशाली इतिहास बहुत पुराना है,जिससे हमारी हिफाजत हो रही है। नौसेना के साहस को प्रणाम।
#बॉम्बे मरीन-
१६६२ को बॉम्बे ब्रिटिश के हाथ में चला गया,लेकिन औपचारिक रूप से ब्रिटिश शासन ने इसे अपने कब्जे में ८ फरवरी १६६५ को लिया। २७ सितम्बर को ब्रिटिश सरकार ने इस द्वीप को ईस्ट इंडिया कम्पनी को दे दिया। इसके बाद बाम्बे से होने वाले व्यापार की रक्षा की जिम्मेदारी भी इस फोर्स को सौंप दी गई। १६८६ से कम्पनी के व्यापार का मुख्य रुप से केन्द्र बॉम्बे बन गया। इसके बाद इस फोर्स का नाम भी बदलकर बॉम्बे मरीन हो गया। इस फोर्स ने न सिर्फ पुर्तगालियों,डचों और फ्रेंच से लड़ने में अहम भूमिका निभाई,बल्कि अन्य देशों के समुद्री डकैतों से भी निपटने में अहम भूमिका निभाई। बॉम्बे मरीन ने बर्मा युद्ध में भी हिस्सा लिया थाl
#बदलता रहा नाम-
१८३० में बॉम्बे मरीन का नाम बदलकर हर मजेस्टीज इंडियन नेवी हो गया। १८४० में चीन के साथ युद्ध में इस सैन्य बल की क्षमता देखने को मिली थी। अगले कुछ दशकों में ताकत बढ़ने के साथ इसका कई बार नाम भी बदला। १८६३ से १८७७ तक इसका नाम एक बार फिर बॉम्बे मरीन कर दिया गया, उसके बाद हर मजेस्टीज इंडियन मरीन कर दिया गया। उस समय मरीन के २ डिवीजन थे। पूर्वी डिविजन कलकत्ता में था,जिसका काम बंगाल की खाड़ी पर नजर रखना। दूसरे डिविजन का नाम पश्चिमी डिविजन था,जिसका मुख्यालय बॉम्बे था। इसके जिम्मे अरब सागर की देखरेख का जिम्मा था। इसकी सेवाओं को देखते हुए १८९२ में इसे रॉयल इंडियन मरीन का खिताब मिला। उस समय उसके बेड़े में ५० पोत थे। १९३४ में इसका नाम बदलकर रॉयल इंडियन नेवी कर दिया गया। १९३५ में नेवी के उल्लेखनीय कामों के लिए किंग्स कलर भेंट किया गया।
#विश्व युद्धों में भूमिका-
पहले विश्व युद्ध के दौरान मरीन ने अहम भूमिका निभाई। इसका इस्तेमाल गश्त के अलावा इराक,मिस्र और पूर्वी अफ्रीका में सैनिकों और साजो-सामान के परिवहन के लिए किया गया। दूसरे विश्वयुद्ध के समय रॉयल इंडियन नेवी में ८ युद्धपोत थे। युद्ध के अंत तक इसके बेड़े में ११७ युद्धक पोत और ३० हजार जवान थे। नौसेना में पहले भारतीय रॉयल इंडियन मरीन में १९२८ में सब लेफ्टिनेंट डी.एन.मुखर्जी को कमीशन किया गया था। इंजीनियर ऑफिसर के पद पर नियुक्त हुए मुखर्जी पहले भारतीय थे,जिनको रॉयल इंडियन मरीन में कमीशन मिला था।
#आजादी के बाद-
जब भारत आजाद हुआ तो उस समय रॉयल इंडियन नेवी के बेड़े में ३२ पोत थे,जो पुराने हो चुके थे। वे पोत सिर्फ तटीय गश्त के मतलब के ही थे। उस समय नेवी में ११,००० अधिकारी और जवान थे। आजादी के बाद नेवी के पहले कमांडर इन चीफ रीयर एडमिरल आईटीएस हॉल,सीआईई थे। २६
जनवरी १९५० को भारत के गणराज्य बनने के साथ ही रॉयल उपसर्ग को हटा दिया गया। इंडियन नेवी यानी भारतीय नौसेना के पहले कमांडर इन चीफ एडमिरल सर एडवर्ड पैरी,केसीबी बने,जिन्होंने १९५१ में एडमिरल सर मार्क पिजी,केबीई,सीबी,डीएसओ को प्रभार सौंप दिया था। ऐसे ही एडमिरल पिजी १९५५ में पहले चीफ ऑफ नेवल स्टाफ यानी नौसेना प्रमुख बने। २२ अप्रैल १९५८ को वाइस एडमिरल आर.डी. कटारी ने नौसेना के प्रथम भारतीय चीफ के रूप में पद ग्रहण किया।
#नौसेना की ताकत-
भारतीय नौसेना के पास एक विमानवाहक समेत करीब ३०० पोत, पनडुब्बियां आदि हैं। इसके बेड़े में १४ फ्रिगेट्स,११ विनाशक पोत,२२ कॉर्वेट्स,१६ पनडुब्बियां,१३९ गश्ती पोत और ४ बारूदी सुरंगों का पता लगाने और उनको तबाह करने वाले पोत हैं।
#अहम ऑपरेशंस-
ऑपरेशन राहत⤵
भारतीय सशस्त्र बलों ने २०१५ में ऑपरेशन राहत को अंजाम दिया था। इस ऑपरेशन में युद्धग्रस्त यमन से लोगों को सुरक्षित निकाला गया। आईएनएस सुमित्रा को लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए भेजा गया था और आईएनएस मुंबई एवं आईएनएस तरकश को उसकी सुरक्षा के लिए भेजा गया था। इस मिशन में न सिर्फ भारतीय नागरिकों बल्कि विदेशी नागरिकों को भी यमन से सुरक्षित निकाला गया।
ऑपरेशन सुकून⤵
साल २००६ में इजरायल और लेबनान के बीच युद्ध हुआ था। बड़ी संख्या में भारत के अलावा श्रीलंका और नेपाल के लोग लेबनान युद्ध में फंस गए थे। उन लोगों को सुरक्षित निकालने की जिम्मेदारी को भारतीय नौसेना ने निभाया था।
ऑपरेशन तलवार⤵
१९९९ में कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन तलवार को अंजाम दिया गया था। भारतीय नौसेना ने कराची पोर्ट के करीब पाकिस्तानी पोतों और नौकाओं के लिए अवरोध पैदा कर दिया। इससे पाकिस्तान में तेल और ईंधन की आपूर्ति प्रभावित हुई। बाद में पाकिस्तान ने भारत से अवरोध हटाने का आग्रह किया।
ऑपरेशन कैक्टस⤵
ऑपरेशन कैक्टस में आईएनएस गोदावरी और आईएनएस बेतवा शामिल थे। १९८८ में चलाए गए इस ऑपरेशन का मकसद मालदीव संकट को सुलझाना था।
ऑपरेशन ट्राइडेंट⤵
ऑपरेशन ट्राइडेंट १९७१ में पाकिस्तान के खिलाफ अंजाम दिया गया था। पाकिस्तान के कराची पोर्ट पर भारतीय नौसेना ने हमला करके उसके कई पोतों को तबाह कर दिया था।
ऑपरेशन विजय⤵
ऑपरेशन विजय १९६१ में गोवा को पुर्तगालियों से चंगुल से आजाद कराने के लिए चलाया गया था। उसमें पहली बार नौसेना का इस्तेमाल किया गया था।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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