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गुरुकुल-शिक्षा भाव जरुरी

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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शिक्षक दिवस विशेष………..

भारत के प्राचीन काल में विद्यार्थी अपने आसपास के गुरु-कुलों में शिक्षा प्राप्त करने जाते थे,और गुरु के साथ वहीं रहते भी थे, जिससे छात्रों का सर्वांग विकास होता था। गुरु और शिष्य का संबंध पवित्र तो होता ही था,यह संबंध जीवनभर का भी हो जाता था, इसीलिए प्रतिदिन गुरुकुल में प्रार्थना के रूप में मार्ग-निर्देश सबके सामने रहता था-
‘ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥’
अर्थात्:
हे परमात्मन्! आप हम दोनों गुरु और शिष्य की साथ-साथ रक्षा करें,हम दोनों का पालन-पोषण करें,हम दोनों साथ-साथ शक्ति प्राप्त करें,हमारी प्राप्त की हुई विद्या तेजप्रद हो,हम परस्पर द्वेष न करें,परस्पर स्नेह करें।’
लेकिन,वर्तमान में जब गुरुकुलों का स्थान विद्यालयों ने ले लिया तो गुरु-शिष्य परम्परा वैसी नहीं रही। अत: विद्यार्थियों एवं शिक्षकों में सामंजस्य बनाए रखने के लिए ‘शिक्षक दिवस’ को एक माध्यम के रूप में निरुपित किया गया,जिससे गुरु-शिष्य के एकात्म-भाव की प्रतीति हो सके।
भारत में ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस इसलिए चुना गया है,क्योंकि यह दिन विश्वविख्यात दार्शनिक और शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन(भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति,दस वर्ष तक रहे,और पाँच वर्ष तक राष्ट्रपति भी रहे)का जन्मदिन है। डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन को १९६२ से शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने अपने छात्रों से जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा जताई थी। दुनिया के १०० से ज्यादा देशों में अलग-अलग तारीख पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। पहले उप-राष्‍ट्रपति डॉ. राधाकृष्‍णन का जन्म ५ सितम्बर १८८८ को तमिलनाडु के तिरुमनी गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही किताबें पढ़ने के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे। राधाकृष्णन का निधन चेन्नई में १७ अप्रैल १९७५ को हुआ|
विश्व के विभिन्न देशों में शिक्षकों (गुरुओं) को विशेष सम्मान देने के लिये शिक्षक दिवस का आयोजन किया जाता है। कुछ देशों में छुट्टी रहती है,जबकि कुछ देश इस दिन कार्य करते हुए मनाते हैं।
भारत में माध्यमिक स्तर के शिक्षा-संस्थानों में शिक्षक दिवस बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन प्रत्येक राज्य में चुने गए अच्छे शिक्षकों को सरकार द्वारा सम्मानित भी किया जाता है। इस दिन छात्र अपने शिक्षक- शिक्षिकाओं के सामने अपने विचार- भावनाएं व्यक्त करते हैं।
डॉ. राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक,प्रख्यात शिक्षाविद्,महान् दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया था।
इस अवसर पर अपनी एक कविता-
अभिनन्दन शिक्षक-दिवस..

शिक्षक-दिवस पर आज है,गुरुओं का अभिनन्दन,
जिनसे सीखा है हमने,करना गुरुता का वंदन।
शिक्षक-दिवस पर आज है,गुरुओं का अभिनन्दन…

अभिनन्दन उस ज्ञानालय का,जिसे याद कर हर्षित है मन;
छात्र-छात्राओं की आँखों में,चमक रहा जो बन अंजन।
शिक्षक दिवस पर आज है,गुरुओं का अभिनन्दन…

परीक्षा निमित्त शिक्षा देने का,बन रहा है जो केन्द्र अध्यापन,
आज लीक से हटकर वह,कर रहा अस्मिता का पालन।
शिक्षक-दिवस पर आज है,गुरुओं का अभिनन्दन…

इसीलिए हैं छात्र-छात्राएँ,पूजते उन शिक्षकों के चरण,
साधनाएं जिनकी ही हैं,कैसे अच्छे बनें ये ललन।
शिक्षक-दिवस पर आज है,गुरुओं का अभिनन्दन…

‘गु’ अंधकार से ‘रु’ प्रकाश,पाने को हैं विह्वल नयन,
श्रद्धा उमड़ी है छूने आकाश, गुरु-अर्चना हित पद पावन।
शिक्षक-दिवस पर आज है,गुरुओं का अभिनन्दन…

गुरु ब्रह्मा-गुरु विष्णु अनुगुंजन,कराता गुरु-महिमा अभिवर्द्धन,
छात्र लगे पौध हैं शिक्षक के चमन, कराने ज्ञान-सुधा से अभिसिंचन।
शिक्षक-दिवस पर आज है,गुरुओं का अभिनन्दन।

शिक्षक-दिवस पर आज,हो रहा मर्यादित गुरु वंदन,
अर्चित हों वे जग में वैसे ही,पूजित हुए हैं जैसे राधाकृष्णन।
शिक्षक-दिवस पर आज है,गुरुओं का अभिनन्दन…॥

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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