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सुख और दु:ख में सदा

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

भूत,वर्तमान और भविष्य का,
सदा होतीं स्पष्ट चित्र पुस्तकें।
सुख और दु:ख में सदा साथ दें,
होतीं हैं प्रगाढ़ मित्र पुस्तकें॥

हारते को दिखातीं राह नित,
करातीं हैं विजय का घोष ये।
अपूर्ण को बदलें पूर्ण में,
उर में उगाती मधुर तोष ये॥

मिटता है तिमिर,और सर्वदा,
नवल आलोक होता राह में।
मनु नित देवत्व को ही खोजता,
होता नव परिवर्तन चाह में॥

भाव में भी हो मलिन गंध जो,
बनतीं हैं वासित इत्र पुस्तकें।
सुख और दु:ख में सदा साथ दें,
होतीं हैं प्रगाढ़ मित्र पुस्तकें॥

उछाह उर में भर,सोपान में,
चढ़ने का देतीं हैं हौंसला।
हो न नीरस,अधर में हास हो,
देती जीवन जीने की कला॥

विचार में गति नव होती सदा,
गगन छूने का सदा मन करे ।
पुस्तकें यदि सतत ही साथ हों,
ताप के कनक सम हम हों खरे॥

पाथर मन भी बनता मोम-सा,
ऊर्जा रखती हैं विचित्र पुस्तकें।
सुख और दु:ख में सदा साथ दें,
होतीं हैं प्रगाढ़ मित्र पुस्तकें॥

भूत,वर्तमान और भविष्य का,
सदा होतीं स्पष्ट चित्र पुस्तकें।
सुख और दु:ख में सदा साथ दें,
होतीं हैं प्रगाढ़ मित्र पुस्तकें॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।

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